Wednesday, January 12, 2011

ग़ज़ल

ग़ज़ल
भूल जाने की बात करते हो
दिल लगाने की बात करते हो

पोंछ भी न सके मेरे आंसू
मुस्कुराने की बात करते हो

हम तो यूँ रात भर नहीं सोए
जाग जाने की बात करते हो

देख मुझको संभल न पाए तुम
दूर जाने की बात करते हो

राज़े दिल अब सभी पे ज़ाहिर है
तुम छिपाने की बात करते हो

वो ज़माना कभी गया ही नहीं
जिस ज़माने को याद करते हो

ज़िंदगी
 
ज़िंदगी धुंध है, कुंहासा है
मन समंदर है, फिर भी प्यासा है

ढूंढ़ते हम किसी को भीड़ में भी
सब है यह तो महज़ दिलासा है

सुबह है कह रहे हैं सारे लोग
क्यों फिर माहौल रात का सा है

रौशनी तो शहर में काफी है
बस मेरा घर ज़रा बुझा सा है


अपना वतन
छोड़कर अपना वतन हम आ गए ऑस्ट्रेलिया,
याद के दिए जला, हर रात भारत को जिया
आँख से आंसू गिरे जब हार के या जीत के,
फोन का चोगा उठाया और मां से कह दिया
निकल आये जब खजाने गाँव के संदूक से,
चाँद का तकिया लगा फिर याद बचपन को किया

हर तरह की बोतलें लाकर सजाईं बार में,
पर हुई पूजा तो गंगाजल ही हाथों में लिया
मंदिरों और मस्जिदों के फासले मिटने लगे,
जो मिला अपने वतन का साथ उसको ले लिया
मुश्किलें जब देश पर आई तो मन व्याकुल हुआ,
खैरियत से सब रहें रब से यही माँगी दुआ




1 comment:

  1. सीधी-सरल भाषा में आपने अपनी भावनाएं व्यक्त की हैं, अच्छा लगा।

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