Monday, January 24, 2011

डार्लिंग हार्बर, Darling Harbour, Sydney


मित्रो, ये कविताएँ मेरी नई पुस्तक 'कंगारूओं के देश में' संकलित हैं
डार्लिंग हार्बर





पंक्तिबद्ध रेस्तरां
चाइनीज़, मलेशियन, एशियन
जेपनीज़, कोरियन, इंडियन
और डार्लिंग हार्बर का पुल
ऊंची-ऊंची इमारतों से घिरा
दिखता नहीं है सिरा ।
देखती हूँ जिस ओर
सुनाई देता है
लोगों के बतियाने का शोर

कॉफ़ी हाउसेज़ और
मकडोनल्ड में बैठे लोग
पार्क  की घास में
धूप सेंकते अधलेटे  लोग ।
तरह-तरह के व्यंजन खाते
कहकहाते लगाते लोग
कपचीनो मफिन के साथ
खेल और मौसम का
की बातें बताते  लोग ।

और मैं छोड़ देती हूँ 
बेवजह ख्यालों में खोना
विमुक्त हो जाती हूँ
और बन जाती हूँ
डार्लिंग हार्बर का एक कोना ।


 
अतीत का एक हिस्सा


डार्लिंग हार्बर के पुल से
देख रही हूँ चारों ओर
बड़ी-बड़ी इमारतें
नियोन चिन्हों से सजे होटल
क्रूज़ पर जाते लोग
खाते- खिलखिलाते
फोटो खिंचाते लोग ।


अचानक खो जाती हूँ
कुछ लिखे, अनलिखे
इतिहास के पन्नों में
और बन जाती हूँ कैप्टेन कुक
तलाश करती हूँ ताजे पानी की
या फिर बन जाती हूँ
चेन से बंधी अपराधी
इग्लैंड से आते जहाज़ की ।


महसूस करती हूँ पीड़ा
अपनी ही ज़मीन पर
मारे जाते एबोरीजिनीज  की
या उस 'स्टोलेन जेनेरेशन ' की 
जो बचपन में ही
सुरक्षा के नाम पर
उनके परिवार से
छीन ली गई ।


जाने कब मैं बनने लगती हूँ
ऑस्ट्रेलिया के
अतीत का एक हिस्सा
चलता रहता है जीवन
पर ख़त्म नहीं होता 
कंगारूओं के देश का

ये रोचक किस्सा

रेखा राजवंशी 

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