ओशो और प्रेम
शायद सच है
कि घृणा ही प्रेम है
और प्रेम ही घृणा ।
ओशो ने कहा था
कि जिससे हम प्रेम करते हैं
उससे ही घृणा भी करते हैं।
और आशा जब बदलती है
निराशा में
तो हम दुखी होते हैं
अपनी उपेक्षा पर रोते हैं ।
मूर्खता है, प्रेम में
प्रतिदान की आशा करना
बेहतर है प्रेम से
दूसरों की झोली भरना।शायद सच है
कि घृणा ही प्रेम है
और प्रेम ही घृणा ।
ओशो ने कहा था
कि जिससे हम प्रेम करते हैं
उससे ही घृणा भी करते हैं।
और आशा जब बदलती है
निराशा में
तो हम दुखी होते हैं
अपनी उपेक्षा पर रोते हैं ।
मूर्खता है, प्रेम में
प्रतिदान की आशा करना
बेहतर है प्रेम से
और तब मैं अपनी
मूर्खता पर पछताती हूँ
और तुम्हें बहुत करीब पाती हूँ
और पुनः तुमसे
प्रेम करने लगती हूँ ।
सार्थक रचना रेखा जी !
ReplyDeleteVery beautiful
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