कचनार के फूल
फूल फिर खिलने लगे कचनार के
आ गए हैं दिन पुराने, प्यार के ।
छेड़ना, रोना, झिझकना, रूठना
आ गए दिन मान के, मनुहार के ।
भाये आईने में खुद को देखना
आ गए दिन साज के, श्रृंगार के ।
हाथ में मेंहदी मिलन की रच गई
द्वार फिर खुलने लगे अभिसार के ।
मन बना चन्दन सुगन्धित हो गया
दूर सब शिकवे हुए संसार के ।
रेखा राजवंशी
बहुत खूबसूरत गीत ! शब्द -चयन बहुत सार्थक और बिम्बधर्मी है । रामेश्वर काम्बोज हिमांशु
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