Sunday, March 6, 2011

International Women's Day - a poem - नारी मुक्ति



नारी मुक्ति

अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस
स्त्री अधिकारों के चर्चे
स्वतंत्रता के नारे
और नारी मुक्ति का युद्ध
सब एक ओर है

दूसरी ओर हैं
सुबह से शाम तक
काम में रत
कमला, विमला और शांति
जो क्रान्ति का अर्थ नहीं जानतीं

उनके लिए
जीवन की इति है
चूल्हा-चौका, मजदूरी
छोटे बच्चों का पेट भरना
और रात को
शराबी पति के
अत्याचारों का शिकार बनना

विरोध क्या है? स्वतंत्रता क्या होती है?
यह सब सोचने का वक्त किसके पास है?
बच्चे बड़े हो जाएँ
अच्छी नौकरी पा जाएँ
मात्र यही आस है

एक दिन मैंने कमला से पूछा
क्यों अत्याचार सहती हो?
सारे दिन चूल्हे की
लकड़ी सी जलती हो
क्यों क्रांति नहीं करतीं?
उसने अचरज से मुझे देखा, बोली
'यह क्रान्ति क्या होती है?
क्या यह हमें खाना देगी? पानी देगी?
भूखे बच्चों का पेट भरेगी?
यदि नहीं तो क्रांति का क्या अर्थ है?
हमारे लिए यह व्यर्थ है


इन दो अतिसीमाओं
विरोधाभासों में घिरा मन
ढूंढता है हल कहाँ है?
फिलहाल यह अध्याय खोलने से पूर्व
कुछ और समस्याओं को सुलझाना है

कैसे कहें कि नारी मुक्ति का ज़माना है
कैसे कहें कि
नारी मुक्ति का ज़माना है

रेखा राजवंशी
'अनुभूति के
गुलमोहर' की एक कविता  
1996


1 comment:

  1. NARI - MUKTI PAR ACHCHHEE KAVITA KE LIYE
    AAPKO BADHAEE AUR SHUBH KAMNA .

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