मन वृन्दावन हो जाता
भावों की फिर रिमझिम होती
मरुथल सावन हो जाता
एक आरती फिर जल जाती
अगर धूप की खुशबू आती
द्वार रंगोली फिर सज जाती
आँगन पावन हो जाता
सारे दर्द पिघल जाते
और सारे शिकवे मिट जाते
इस धरती से उस अम्बर तक
चन्दन-चन्दन हो जाता
चाँद सितारे फिर मुस्काते
सौ सन्देश तुम्हें पहुंचाते
चम्पा और चमेली खिलतीं
सुरभित जीवन हो जाता
हरसिंगार फिर झरने लगते
महक पुरानी भरने लगते
बजने लगती कहीं बांसुरी
सारा आलम खो जाता
पर तुम हो आवारा बादल
विरहिन की आँखों का काजल
अगर बरसते तो गंगाजल
मनवा दर्पण हो जाता
HRIDAY SPARSHEE GEET KE LIYE AAPKO DHERON
ReplyDeleteBADHAAEEYAN AUR SHUBH KAMNAAYEN .
कविता के भाव मन को छू गए
ReplyDeleteहम सब मिल कर गीले शिकवे दूर कर लेते
क्षमा क्षमा दिवस क्षमा मांग गले मिल जाते
शुभ कामनाएँ
गुड्डो दादी चिकागो से
रेखा जी - बहुत ही मनभावन रचना है आपकी - सचमुच मुझे बहुत अच्छा लगा पढ़कर - एक एक शब्द करीने से सजाया है आपने - वाह क्या बात है?
ReplyDeleteसादर
श्यामल सुमन
09955373288
http://www.manoramsuman.blogspot.com
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गजल है यह। अच्छा लगा पढ़ना।
ReplyDeleteरेखा जी, अति सुंदर लगा यह गीत. गीतों को कितने चाव से पढ़ता था, इस का एक nostalgia सा हो गया. और अधिक प्रकाशित कीजिये, ये प्यारे प्यारे गीत.
ReplyDeleteमन को छूने वाला गीत… बधाई !
ReplyDeleteHello Rekha ji,
ReplyDeleteIt is such a touching poem. I remember my old days.
Congratulations for writing such a nice poetry.
Regards,
Kishore and Abha
ह्रदय को छो लेने वाली कविता है
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