ऑस्ट्रलिया में रंगभेद का कारण ‘श्वेत ऑस्ट्रेलिया नीति’
ऑस्ट्रेलिया पिछले दो वर्षों से विवाद के दायरे में घिरा रहा है। भारतीय छात्रो की मार पिटाई और उनके साथ हुई हिंसात्मक घटनाओं के कारण भारतीय ऑस्ट्रेलिया के प्रति अपने मन में नफरत पाल बैठे हैं। तो क्या वाकई में ऑस्ट्रेलिया में प्रजातिवाद है? हालांकि किसी भी तरह के विभेदीकरण को लेकर कड़े नियम बने हुए हैं जैसे 'एंटी डिसक्रिमिनेशन एक्ट' आदि।
ऑस्ट्रेलिया पिछले दो वर्षों से विवाद के दायरे में घिरा रहा है। भारतीय छात्रो की मार पिटाई और उनके साथ हुई हिंसात्मक घटनाओं के कारण भारतीय ऑस्ट्रेलिया के प्रति अपने मन में नफरत पाल बैठे हैं। तो क्या वाकई में ऑस्ट्रेलिया में प्रजातिवाद है? हालांकि किसी भी तरह के विभेदीकरण को लेकर कड़े नियम बने हुए हैं जैसे 'एंटी डिसक्रिमिनेशन एक्ट' आदि।
ऑस्ट्रेलिया में तीस साल पहले आए हुए भारतीयों का मानना है कि अब स्थिति सुधरी है, परन्तु अपराध बढ़ा है और अपराध के चलते ही भारतीय छात्रों के साथ इस तरह की घटनाएँ हुई है। कुछ लोग ये भी मानते हैं कि ये प्रजातिवाद या रंग विभेद खुले रूप में तो नहीं है पर जब नौकरी में ऊंचे ओहदे पर प्रमोशन की बात होती है तो श्वेत लोगों को ही प्राथमिकता दी जाती है। तो आइये देखें कि ऑस्ट्रेलिया में इस रंगभेद नीति और प्रजातिवाद की जड़ कहाँ है?
'व्हाईट ऑस्ट्रेलिया पोलिसी' यानी 'श्वेत ऑस्ट्रेलिया नीति' की जड़ें 1901 तक जाती हैं, जब ऑस्ट्रलिया एक फेडरेशन बना तो कुछ ऐसी नीतियां बनाई गई जिसके तहत नॉन-व्हाईट यानि अश्वेत लोगों को ऑस्ट्रेलिया में प्रवेश की अनुमति नहीं दी गई और यह नीति 1901 से लेकर 1973 तक लागू रही । यह एक ऐसी नीति थी जिससे दुनिया भर में ऑस्ट्रेलिया के प्रति रोष पैदा हो गया और साथ ही ऑस्ट्रेलिया पर एक 'रेसिस्ट' देश का ठप्पा लग गया।
'व्हाईट ऑस्ट्रेलिया पोलिसी' यानी 'श्वेत ऑस्ट्रेलिया नीति' की जड़ें 1901 तक जाती हैं, जब ऑस्ट्रलिया एक फेडरेशन बना तो कुछ ऐसी नीतियां बनाई गई जिसके तहत नॉन-व्हाईट यानि अश्वेत लोगों को ऑस्ट्रेलिया में प्रवेश की अनुमति नहीं दी गई और यह नीति 1901 से लेकर 1973 तक लागू रही । यह एक ऐसी नीति थी जिससे दुनिया भर में ऑस्ट्रेलिया के प्रति रोष पैदा हो गया और साथ ही ऑस्ट्रेलिया पर एक 'रेसिस्ट' देश का ठप्पा लग गया।
जब हम ऑस्ट्रेलिया के इतिहास पर नज़र डालें तो पता लगेगा कि इस अश्वेत नीति के कई कारण थे। पहला कारण था ऑस्ट्रेलिया में सोना पाया जाना, 1851 में जब पहली बार न्यू साउथ वेल्ज़ में सोना पाया गया और इसके छः महीने बाद विक्टोरिया में और बाद में अन्य स्थानों में भी स्वर्ण पाए जाने की खबर जब आग की तरह फ़ैली तब दुनिया भर के लोग ऑस्ट्रेलिया आ गए। इनमें मुख्य थे चीन से आए लोग और बाद में दक्षिण समुद्री द्वीपों से आये लोग। दूसरा कारण था कि मजदूरों में आपसी मतभेद हो गया, क्योंकि दूसरे देशों से आए मजदूरों ने कम वेतन लेकर लम्बे समय तक कम करना शुरू कर दिया और तीसरा प्रमुख कारण था कि कुछ राष्ट्रवादी लोगों ने उन्नीसवीं शताब्दी के प्रारंभिक काल में प्रजातिवाद का वातावरण पैदा कर दिया था, जिसके कारण 1901 में एक कानून 'इमिग्रेशन रेसट्रिकशन एक्ट' पास हुआ जिसका मकसद अप्रवासन पर कुछ प्रतिबन्ध लगाना था जिससे ऐसे लोगों के आने पर रोक लगाई जा सके जो असामान्य नज़र आते थे या जो किसी संक्रामक बीमारी से ग्रसित थे या जो सरकार पर एक बोझ बन सकते थे या जिनका चरित्र संदिग्ध था। इस एक्ट में वेश्याओं, अपराधियों और मजदूरों के आने पर भी प्रतिबन्ध लगाए गए। उनके अप्रवासन को रोकने के लिए एक ऐसा डिक्टेशन टेस्ट यानि अनुवाद की परीक्षा उन्हें दी जाने लगी जो बहुत कठिन थी और अप्रवासन के इच्छुक लोगो को ये टेस्ट ऐसी भाषा में दिए जाते थे जो उन्हें ज्ञात ही नहीं थी। इन लिखित परीक्षणों का एकमात्र प्रयोजन था अश्वेत, अवांछित लोगों को ऑस्ट्रेलिया में प्रवेश की अनुमति न देना। इन सख्त मापदंडों का उस वक्त ऑस्ट्रेलिया वासियों ने स्वागत किया और इसकी भरपूर सराहना भी की। यहाँ तक कि 1919 में ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री विलियम मौरिस ह्युघ्स ने कहा ‘ये हमारी सबसे बड़ी उपलब्धि है’।
बाद में ऑस्ट्रेलिया की इस नीति का समापन होने में 25 साल लग गए और इसका समापन की शुरूआत तब हुई जब १९४९ में लिबरल और कंट्री दलों का मेल हुआ और तत्कालीन इमिग्रेशन मंत्री हैरोल्ड होल्ट ने पहली बार आठ सौ अश्वेत लोगों को ऑस्ट्रेलिया में ही रहने की आज्ञा दी और जापान युद्ध की विधवा स्त्रियों को वापिस आने की अनुमति दी। इसके बाद के सालों में धीरे-धीरे ऑस्ट्रलिया में इस श्वेत नीति में सकारात्मक बदलाव किये गए और अंततः 1973 में जब नई लेबर सरकार बनी तो इस नीति को पूरी तरह समाप्त कर दिया गया।
बाद में ऑस्ट्रेलिया की इस नीति का समापन होने में 25 साल लग गए और इसका समापन की शुरूआत तब हुई जब १९४९ में लिबरल और कंट्री दलों का मेल हुआ और तत्कालीन इमिग्रेशन मंत्री हैरोल्ड होल्ट ने पहली बार आठ सौ अश्वेत लोगों को ऑस्ट्रेलिया में ही रहने की आज्ञा दी और जापान युद्ध की विधवा स्त्रियों को वापिस आने की अनुमति दी। इसके बाद के सालों में धीरे-धीरे ऑस्ट्रलिया में इस श्वेत नीति में सकारात्मक बदलाव किये गए और अंततः 1973 में जब नई लेबर सरकार बनी तो इस नीति को पूरी तरह समाप्त कर दिया गया।
अति ज्ञानवर्धक और रोचक और महत्वपूर्ण सामग्री संक्षिप्त में देने के लिए धन्यवाद.
ReplyDeleteइस लेख में मूल अस्ट्रेलियावासियों का ज़िक्र भी होता तो अच्चा था.
--महेश गुप्त ’ख़लिश’
12 January 2001
Badhai Rekha ji. Titali wali kahani rochak lagi evaM ashweton ke prati neeti par lekh gyanvardhak laga.
ReplyDeleteMahesh Chandra Dwivedy