बेटी बिंदी की लाली है
सूर्य किरण प्रातः वाली है।
बेटी है नैनों का काजल
बेटी जैसे है गंगाजल।
बेटी है पायल की रुनझुन
बेटी है गीतों की गुनगुन ।
बेटी है तुलसी आँगन की
खन-खन जैसे है कंगन की।
बेटी है तो घर में खुशियाँ
बेटी से ही चलती दुनिया ।
याद आते हैं बचपन के दिन ।
तड़पाते हैं बचपन के दिन ।
वो दिन दादा के गाँव के
वो दिन पीपल की छाँव के ।
शैतानी के साज़िश के दिन
गर्मी के दिन बारिश के दिन ।
परियों के भूतों के क़िस्से
चोरी के आमों के हिस्से ।
वो दिन नुक्कड़ के नाई के
वो दिन कल्लू हलवाई के ।
याद आते हैं……
वो दिन चूरन के इमली के
वो दिन फूलों के तितली के ।
वो दिन सावन के झूलों के
वो दिन अनजानी भूलों के ।
चंदा के दिन तारों के दिन
खेलों के गुब्बारों के दिन ।
वो दिन अलमस्त नज़ारों के
वो दिन तीजों त्यौहारों के।
याद आते हैं……
हैं याद दशहरे के मेले
वो चाट पकौड़ी के ठेले ।
वो रावण का पुतला जलना
वो राम का सीता से मिलना ।
जगमग वो दिन दीवली के
आतिशबाज़ी मतवाली के ।
वो दिन जो खील बताशों के
वो दिन जो खेल तमाशों के ।
याद आते हैं……
वो दिन गुझिया के कॉंजी के
वो दिन टेसू के झॉंझी के ।
वो दिन कट्टी के, साझी के
वो दिन ताशों की बाज़ी के ।
वो दिन होली के रंगों के
वो आपस के हुड़दंगों के ।
वो दिन मीठी ठंडाई के
नमकीन के और मिठाई के ।
याद आते हैं……
वो दिन अम्मा के खाने के
बाबू के लाड़ लड़ाने के ।
वो दिन गुड्डे के, गुड़िया के
वो दिन सपनों की दुनिया के ।
याद आते हैं…
मिट्टी के घरोंदे
बनते टूटते रहे,
सपनों की गठरी
लुटेरे लूटते रहे।
पीड़ा की टोकरी,
कंधे पर लगे बड़ी,
कुम्हलाई अभिलाषा
गर्मी में खड़ी-खड़ी ।
बालू से फिसल गए
कितने दिन-रात,
विकलित मन ढूंढ रहा
कोई नया प्रात|
तड़पाते हैं बचपन के दिन ।
वो दिन दादा के गाँव के
वो दिन पीपल की छाँव के ।
शैतानी के साज़िश के दिन
गर्मी के दिन बारिश के दिन ।
परियों के भूतों के क़िस्से
चोरी के आमों के हिस्से ।
वो दिन नुक्कड़ के नाई के
वो दिन कल्लू हलवाई के ।
याद आते हैं……
वो दिन चूरन के इमली के
वो दिन फूलों के तितली के ।
वो दिन सावन के झूलों के
वो दिन अनजानी भूलों के ।
चंदा के दिन तारों के दिन
खेलों के गुब्बारों के दिन ।
वो दिन अलमस्त नज़ारों के
वो दिन तीजों त्यौहारों के।
याद आते हैं……
हैं याद दशहरे के मेले
वो चाट पकौड़ी के ठेले ।
वो रावण का पुतला जलना
वो राम का सीता से मिलना ।
जगमग वो दिन दीवली के
आतिशबाज़ी मतवाली के ।
वो दिन जो खील बताशों के
वो दिन जो खेल तमाशों के ।
याद आते हैं……
वो दिन गुझिया के कॉंजी के
वो दिन टेसू के झॉंझी के ।
वो दिन कट्टी के, साझी के
वो दिन ताशों की बाज़ी के ।
वो दिन होली के रंगों के
वो आपस के हुड़दंगों के ।
वो दिन मीठी ठंडाई के
नमकीन के और मिठाई के ।
याद आते हैं……
वो दिन अम्मा के खाने के
बाबू के लाड़ लड़ाने के ।
वो दिन गुड्डे के, गुड़िया के
वो दिन सपनों की दुनिया के ।
याद आते हैं…
नया प्रात
बनते टूटते रहे,
सपनों की गठरी
लुटेरे लूटते रहे।
पीड़ा की टोकरी,
कंधे पर लगे बड़ी,
कुम्हलाई अभिलाषा
गर्मी में खड़ी-खड़ी ।
बालू से फिसल गए
कितने दिन-रात,
विकलित मन ढूंढ रहा
कोई नया प्रात|
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