दीप रातों में जला के रखिये
फूल कांटों में खिलाके रखिये ।
फूल कांटों में खिलाके रखिये ।
जाने कब घेर ले अकेलापन
एक-दो दोस्त बनाके रखिये ।
दर्द के, दुःख के विरह के आंसू
मुस्कराहट में छिपाके रखिये ।
राह लम्बी है ज़िंदगी छोटी
ख़्वाब खुशियों के सजाके रखिये ।
राज़ अपने हों या पराए हों
अपने होठों में दबाके रखिये।
दोस्त तो दोस्त दुश्मनों को भी
अपने सीने से लगाके रखिये ।
कोई हमदम न कहीं मिल जाए
चाँद तारों को सजाके रखिये ।
शहर का मौसम
आज मेरे शहर का मौसम उदास है
जैसे कि कोई दिल के कहीं आस-पास है ।
जैसे कि कोई दिल के कहीं आस-पास है ।
आहट किसी के पाँव की सुनकर लगा मुझे
चुपचाप चल रहा है, कोई मेरे साथ है ।
क्यों सर्द रात आज फिर देने लगी तपिश
लगता है तेरे हाथ में फिर मेरा हाथ है ।
आज जाने क्या हुआ कि वक्त रुक गया
काटे नहीं कटती भला ये कैसी रात है ।
जिसकी तलाश करती हूँ, तेरी निगाह में
लगता है उस सवाल का ये ही जवाब है ।
जैसे हर बात पे
जैसे हर बात पे डर लगता है
कितना मुश्किल ये सफ़र लगता है ।
कितना मुश्किल ये सफ़र लगता है ।
लोग रोने पे सज़ा देते हैं
मुस्कराना तो ज़हर लगता है ।
मुस्कराना तो ज़हर लगता है ।
राह के दीप बुझ गए सारे
कैसा वीराना शहर लगता है ।
लाके साहिल पे डुबो देता है
ये सफ़र मौत का घर लगता है ।
ये सफ़र मौत का घर लगता है ।
उसकी सूरत का क्या करें दीदार
जब ये पर्दा ही कहर लगता है ।
जब ये पर्दा ही कहर लगता है ।
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