Friday, January 14, 2011

सिडनी में अशोक चक्रधर जी Ashok Chakradhar in Sydney

लोकप्रिय कवि अशोक चक्रधर जी से सिडनी में एक मुलाक़ात 



पांच माह पहले अशोक जी और बागेश्री जी अपने बेटे अनुराग के पास सिडनी आए, चूँकि वे दिल्ली में मेरे पड़ोसी थे और उनकी कविताओं की मैं प्रशंसक भी हूँ , और बागेश्री जी का गाना भी मुझे पसंद था, तो उनसे अनुराग के घर में मुलाक़ात हुई और बातचीत का सिलसिला चल निकला। वे मात्र एक कवि ही नहीं हैं, बल्कि एक विचारक और दार्शनिक भी हैं । जब भी वे ऑस्ट्रेलिया आते हैं तो हिन्दी प्रेमी उन्हें घेर ही लेते हैं और वे भी कम्प्यूटर ज्ञान, हिन्दी सोफ्टवेयर सबको बड़े प्रेम से बांटते हैं । दुनिया को देखने का उनका अलग और व्यापक दृष्टिकोण है । तो आइये उनसे की गई बातचीत का एक अंश पढ़ें-

प्रश्न: अशोक जी
आपने ऑस्ट्रेलिया में कोई कविता या ग़ज़ल लिखी?
      कभी-कभी यहाँ सपने में ग़ज़ल होती है। जब एक दो शेर हो जाते हैं तो याद आता है कि ये तो सपना है और सुबह तक भूल न जाऊं यह सोचकर कागज़, कलम उठा लेता हूँ, जब ग़ज़ल पूरी हो जाती है तो खुश होता हूँ, बिस्तर से उठकर डैक्सटर के पास जाता हूँ और उसे सुनाता हूँ ।

प्रश्न: ये डैक्सटर कौन है?
    डैक्सटर अनुराग की मित्र सबरीना का प्यारा सा पूडुल कुत्ता है ।

प्रश्न: आपकी कवि कल्पना की बात ही अलग है, तो आगे बताइये ।
    दिन में जब हम सपनीले होते हैं तो भावनाओं से गीले होते हैं और दिमाग की सवारी पर शब्दों के पीछे सरपट दौड़ लगाने लगते हैं । आखेट करते हैं शब्दों का, लेकिन रचना तब दमदार बनती है, जब शब्द आपके पीछे भागें ।

प्रश्न: ऑस्ट्रेलिया में आपका अनुभव क्या रहा?

    यहाँ लोगों के व्यवहार में खुलापन है । जब पार्क में सुबह डैक्सटर को घुमाने ले जाता हूँ तो सारे कुत्ते एक दूसरे के साथ खेलते हैं,  एक दूसरे को देख कर खुश होते है। इसी तरह यहाँ अजनबियों से भी मुस्कान का आदान-प्रदान होता है, लोग मित्रवत हैं, यह एक ऐसी संस्कृति है जो पूरी धरा पर होनी चाहिए ।

प्रश्न: तो आपका ऑस्ट्रेलिया प्रवास अच्छा रहा?
   मेरा बेटा अनुराग यहाँ है और इस वजह से सिडनी आना-जाना लगा ही रहता है अब तो ऑस्ट्रेलिया भी अपना ही लगता है ।

अशोक जी से मुलाक़ात अच्छी रही, बागेश्री जी के हाथों की चाय भी मिली। लगा कि मायके से कोई आया है, अपने देश की यादें लेकर, अपनी मिट्टी की सुगंध समेटे ।

रेखा राजवंशी

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