ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासी यहाँ पर रहने वाले 'एबोरीजनीज़' यानी आदिवासी हैं जो अंग्रेजों के पहुँचने से पहले यहाँ पर बसे हुए थे । इतिहासविदों के अनुसार ऑस्ट्रेलिया में चालीस या पचास हज़ार साल पूर्व पहली बार मनुष्य के पहुंचने के प्रमाण मिलते हैं । परन्तु ये अनुमान लगाया जाता है कि 125 ,000 वर्षों के अन्दर ही किसी समय मनुष्य यहाँ पहुंचा और बस गया । जो प्राचीनतम अवशेष प्राप्त हुए हैं उनसे पता लगता है कि 40 ,000 साल पहले मानव यहाँ रहता था और कहा जाता है कि इनके वंशज एक बार में ही ऑस्ट्रेलिया आकर बस गए परन्तु कुछ लोगों का ये भी मानना है कि तीन अलग-अलग समय पर वे यहाँ पहुंचे । प्रारम्भ में ये लोग शिकार करके गुज़ारा करते थे, भोजन और पानी की तलाश में वे जगह बदल लेते थे, कई बार खराब मौसम भी उन्हें नई जगह ढूँढने के लिए बाध्य कर देता था पर वे पूरी तरह बंजारे नहीं थे, उन्हें अर्द्ध खानाबदोश कहा जा सकता है । ज़्यादातर आदिवासी देश के दक्षिणी और पूर्वी क्षेत्र में रहते थे । जब अंग्रेजों का पहला जहाज़ी बेड़ा 1788 में पहली बार ऑस्ट्रेलिया आया तो उनकी कुल संख्या करीब 750 ,000 थी । इन आदिवासियों की कई जातियां थीं, जो अपने दल में रहती थीं और उनकी भाषा भी अलग-अलग थीं। उस समय इन बोलियों की संख्या करीब तीन सौ थी पर अब इनमें से करीब दो सौ भाषाएँ या तो समाप्त हो चुकी हैं या समाप्त प्रायः हैं ।
आज इनकी संख्या ऑस्ट्रेलिया की कुल जनसंख्या का 2 .7 भाग है । इन मूल निवासियों को दो श्रेणियों में रखा जाता है 'एबोरीजनीज़' और 'टॉरेस स्ट्रेट आइलैंडर', एबोरीजनीज़ ऑस्ट्रेलिया के कुछ हिस्सों, तस्मानिया और आस-पास के द्वीपों में रहते हैं और टॉरेस स्ट्रेट आइलैंडर्स टॉरेस स्ट्रेट आइलैंड्स में रहते हैं, जो क्वींसलैंड के उत्तरी भाग में स्थित हैं और पपुआ न्यू गिनी के पास हैं, । इन आदिवासियों की भाषा, संस्कृति, मूल्य, परम्पराएं और विश्वास अलग-अलग हैं । आज के अधिकतर एबोरीजनल लोग अंग्रेज़ी भाषा का उपयोग करते हैं । इन एबोरीजनल्स का कला और संगीत से गहरा रिश्ता था, अपनी सभ्यता और मूल्य अगली पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए वे कहानियों का उपयोग करते थे । इन कहानियों को 'ड्रीम टाइम स्टोरीज़' यानि स्वप्न कालिक कहानियां कहते हैं, इनके माध्यम से अपने नियम और परम्पराएं वे अपने बच्चों को सिखाते थे, उनकी कुछ रीतियाँ थीं जिनका पालन करना समूह के सदस्यों के लिए ज़रूरी था, नहीं तो दंड देने का विधान था । बच्चे बुजुर्गों की बहुत इज्ज़त करते थे । डिजरी डू नाम का संगीत वाद्य इनका प्रिय वाद्य है जिसे आज भी हर उत्सव में बजाया जाता है । पत्थरों और चट्टानों पर इनके द्वारा बनाए हुए चित्र भी इनकी कलात्मकता का परिचय देते हैं, अपने शरीर पर भी वे विभन्न आकारों में चित्रकारी करते हैं । बूमरैंग इनके द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला एक ऐसा शस्त्र है जिसकी विशेषता है कि फेंके जाने पर शिकार करके शिकारी के पास ही वापिस लौट आता है । इनके भोजन में कंगारू का मांस लोकप्रिय है, हालांकि अन्य जानवरों का मांस भी ये शौक से खाते हैं, इसके अलावा मछली, मेवे, झाड़ियों में उगने वाले फल इनके भोजन का भाग हैं । अंग्रेजों के आने पर इन्हें उनके अत्याचारों का शिकार होना पड़ा और इनकी संख्या भी कम हो गई, पर आज ऑस्ट्रेलिया में इनकी अलग पहचान है और सरकार इन्हें ऑस्ट्रेलिया के मूल वंशज के रूप में मान्यता देती है ।
बहुत अच्छी जानकारी...धन्वयाद!!
ReplyDelete