Sunday, February 13, 2011

Love and Osho, On Valentines Day




ओशो और प्रेम


शायद सच है
कि घृणा ही प्रेम है
और प्रेम ही घृणा

ओशो ने कहा था
कि जिससे हम प्रेम करते हैं
उससे ही घृणा भी करते हैं
और आशा जब बदलती है
निराशा में
तो हम दुखी होते हैं
अपनी उपेक्षा पर रोते हैं
मूर्खता है, प्रेम में
प्रतिदान की आशा करना
बेहतर
है प्रेम से
दूसरों की झोली भरना

और तब मैं अपनी
मूर्खता पर पछताती हूँ
और तुम्हें बहुत करीब पाती हूँ
और पुनः तुमसे
प्रेम करने लगती हूँ


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