Saturday, January 29, 2011

In the land of Kangaroos, ज़िंदगी छलने लगी


ज़िंदगी छलने लगी
 


  शाम जब ढलने लगी

 
कंगारूओं के देश में
 
पीर सी पलने लगी
 
कंगारूओं के देश में

 
याद फिर आने लगे
 
कुछ दोस्त अपने वतन के
 
आग सी जलने लगी
 
कंगारूओं के देश में
 दूर तक पसरी हुई थीं
 
अपनी जो परछाइयाँ
 
हाथ फिर मलने लगीं
 
कंगारूओं के देश में

 
फिर लगा मन सोचने
 
कि क्या मिला क्या न मिला
 
कुछ कमी खलने लगी
 
कंगारूओं के देश में

 
वक्त पंछी सा न जाने
 
कब, कहाँ उड़ता गया
 
ज़िंदगी छलने लगी
 
कंगारूओं के देश में



-रेखा राजवंशी

Monday, January 24, 2011

डार्लिंग हार्बर, Darling Harbour, Sydney


मित्रो, ये कविताएँ मेरी नई पुस्तक 'कंगारूओं के देश में' संकलित हैं
डार्लिंग हार्बर





पंक्तिबद्ध रेस्तरां
चाइनीज़, मलेशियन, एशियन
जेपनीज़, कोरियन, इंडियन
और डार्लिंग हार्बर का पुल
ऊंची-ऊंची इमारतों से घिरा
दिखता नहीं है सिरा ।
देखती हूँ जिस ओर
सुनाई देता है
लोगों के बतियाने का शोर

कॉफ़ी हाउसेज़ और
मकडोनल्ड में बैठे लोग
पार्क  की घास में
धूप सेंकते अधलेटे  लोग ।
तरह-तरह के व्यंजन खाते
कहकहाते लगाते लोग
कपचीनो मफिन के साथ
खेल और मौसम का
की बातें बताते  लोग ।

और मैं छोड़ देती हूँ 
बेवजह ख्यालों में खोना
विमुक्त हो जाती हूँ
और बन जाती हूँ
डार्लिंग हार्बर का एक कोना ।


 
अतीत का एक हिस्सा


डार्लिंग हार्बर के पुल से
देख रही हूँ चारों ओर
बड़ी-बड़ी इमारतें
नियोन चिन्हों से सजे होटल
क्रूज़ पर जाते लोग
खाते- खिलखिलाते
फोटो खिंचाते लोग ।


अचानक खो जाती हूँ
कुछ लिखे, अनलिखे
इतिहास के पन्नों में
और बन जाती हूँ कैप्टेन कुक
तलाश करती हूँ ताजे पानी की
या फिर बन जाती हूँ
चेन से बंधी अपराधी
इग्लैंड से आते जहाज़ की ।


महसूस करती हूँ पीड़ा
अपनी ही ज़मीन पर
मारे जाते एबोरीजिनीज  की
या उस 'स्टोलेन जेनेरेशन ' की 
जो बचपन में ही
सुरक्षा के नाम पर
उनके परिवार से
छीन ली गई ।


जाने कब मैं बनने लगती हूँ
ऑस्ट्रेलिया के
अतीत का एक हिस्सा
चलता रहता है जीवन
पर ख़त्म नहीं होता 
कंगारूओं के देश का

ये रोचक किस्सा

रेखा राजवंशी 

Thursday, January 20, 2011

बुल्ब्री An Aboriginal story (4) of How the Koala was made

बुल्ब्री कोआला
An Aboriginal story of How the Koala was made



सपने की दुनिया में, एक छोटा लड़का था जिसका नाम बुल्ब्री था।

बुल्ब्री को पेड़ों पर चढ़ना बहुत पसंद था, जब उसकी माँ और कबीले की अन्य औरतें अपने खेमे के बाहर खाना इकट्ठा करने जातीं। एक दिन, जब औरतें खाना इकठ्ठा कर रहीं थी, बुल्ब्री ने अपनी माँ से पूछा कि क्या वह जाकर पेड़ों पर चढ़ सकता है, हमेशा की तरह जैसा वह अक्सर करता था।

उसकी माँ ने कहा, "ठीक है, अगर तुम बहुत दूर नहीं जाते और खाना इकट्ठा करके हमारे जाने से पहले आ जाते हो, तो ठीक है।"

वह बुल्ब्री से हमेशा सावधान रहने को कहती। उसने बुल्ब्री से कहा  कि वह अपने इलाके की सीमा के बाहर नहीं जाए, क्योंकि डिरगन औरत पास में हो सकती हैं।

डिरगन औरत बहुत ताकतवर जादूगरनी थी, और अपनी शक्ति वह बुरे कामों में इस्तेमाल करती थी लेकिन बुल्ब्री छोटा था और किसी भी चीज़ से नहीं डरता था। तो वह पेड़ों के बीच खेलने चला गया। जब वह पेड़ों के बीच खेल रहा था, उसने ध्यान नहीं दिया कि वह कितनी दूर आ गया है, और उसे भूख लगने लगी, तो उसने एक बड़े गोंद के पेड़ से मुट्ठी भर पत्तियाँ तोड़ लीं, और उन्हें खाने लगा।

समय अच्छा बीत रहा था और उसने अपने मन में सोचा "कितना अच्छा होता कि अगर मैं पेड़ों में ही रह सकता, तो कोई भी मुझसे न कह पाता कि क्या करना है।"

और उस समय, डिरगन जादूगरनी ने बुल्ब्री की प्रार्थना सुन ली, और कहा "अगर वह हमेशा के लिए पेड़ों में ही रहना चाहता है, तो ऐसा ही होगा।"

जब उसने ऐसा कहा, तब जादू से अपनी बड़ी ताकतों को बुलाया, हवा में अपनी बाँहे घुमाते हुए बुल्ब्री पर एक जादू फेंका।

छोटे लड़के को पता नहीं था कि क्या हो रहा हैउसका शरीर एक जानवर में बदलने लगा,  उसके शरीर पर भूरे बाल उगने लगे। उसके हाथ जैसे पंजों में जकड़ने लगे, डर के मारे, वह अपनी माँ को पुकारने लगा। लेकिन उसे अपनी आवाज़ ही वापिस सुनाई दी, जो एकदम बदल गई थी ठीक उसी समय, बुल्ब्री की माँ चिंता करने लगी कि वह कहाँ होगा जब दूर से, उसे एक जानी-पहचानी आवाज़ सुनाई दी,  तो वह तेज चिल्लाहटों की दिशा में दौड़ी।

वह दौड़ती रही, दौड़ती रही, तब अचानक चिल्लाहट और तेज सुनाई देने लगी। उसने देखा कि चिल्लाने की आवाज़ पेड़ों के ऊपर से आ रही है। उसने ऊपर नज़र उठाई तो देखा एक बालों वाला, छोटा, भूरे रंग का भालू जैसा जानवर गोंद के पेड़ की डालियों के बीच बैठा है लेकिन उसने इस पर ध्यान नहीं दिया और अपनी खोज जारी रखी, वह चिल्लाती रही,
"बुल्ब्री! बुल्ब्री! तुम कहाँ हो?"

छोटा बुल्ब्री बस रोता रहा और माँ उसे ढूंढती रही मगर उसे छोटा बुल्ब्री कभी नहीं दिखा। बुल्ब्री कोआला बन गया (एक ऑस्ट्रेलियन पशु जो पेड़ पर रहता है और गोंद के पेड़ की  पत्तियाँ खाता  है) आज तक, कोआला अपने रूप बदलने की डरावनी कहानी को याद रखता है और पेड़ों में छिपा रहता है, नीचे आने से डरता है और अभी भी अपनी माँ को पुकारता है। 



कोआला कैसा पशु है?   कोआला एक ऑस्ट्रेलियन पशु है जो भालू से  मिलता-जुलता है
ये सलेटी रंग का होता है, पर कहीं-कहीं भूरा रंग भी दिखाई देता है , कोआला का वजन करीब नौ किलो तक होता है। कोआला मांस नहीं खाता, यूकलिप्टस पेड़ की पत्तियाँ खाता है। कोआला का नाम आदिवासी भाषा से आया है जिसका मतलब है 'पानी नहीं ' कोआला पानी नहीं पीता, बल्कि गोंद यानि यूकलिप्टस की पत्तियों से ही पानी की कमी पूरी करता है । पर जब वह बीमार होता है तो थोड़ा पानी पीता है। कोआला भी कंगारू की तरह अपने बच्चे को अपने शरीर से जुड़ी थैली में ही पालता है और बड़ा करता है

ड्रीम टाइम और एबोरीजनल्स के बारे में जानने के लिए मेरा लेख 'ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासी' पर क्लिक करें
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Hindi Translation for an Animation Film By Rekha Rajvanshi

Wednesday, January 19, 2011

तितली और बिरावै An Aboriginal Story (3) of how Caterpillar became a Butterfly

तितली और बिरावै
An Aboriginal Story of how a Caterpillar became a Butterfly



बहुत पुरानी बात है, उन दिनों, जब धरती की रचना हो ही रही थी, केटरपिलर यानि तितली का बच्चा दुनिया को बनाने वाली आत्मा के पास आया जो झाड़ी की छाया में आराम कर रही थी

"तुम कौन हो?" केटरपिलर ने पूछा।

"मैं बिरावै हूँ" आत्मा ने उत्तर दिया।

"और मैं पौधों, पेड़ों और घास का ध्यान रखता हूँ। मैं फूलों में रंग भरता हूँ और किसी भी ऐसी चीज़ में जिसे रंगने की ज़रुरत है, रंगता हूँ "

"आप बहुत थके हुए लग रहे हैं, क्या मैं आपकी मदद कर सकता हूँ?" केटरपिलर ने पूछा

"तुम ज्यादा कुछ तो नहीं कर सकते, मुझे उस तरफ दलदल में पीले घंटी जैसे फूलों को रंगना बाकी है।" बिरावै ने कहा

"शायद मैं आपके लिए आपके रंग उठा सकता हूँ। केटरपिलर ने पूछा क्या यह ठीक है?"

तो बिरावै ने कहा कि ठीक है।

तीन दिनों तक, केटरपिलर रंग ले जाता रहा, जब वह आत्मा फूलों को रंग रही थी। उसमें से रंग के कुछ छीटें केटरपिलर पर भी पड़े, पर उसे बुरा नहीं लगा, क्योंकि उसे मदद करना अच्छा लग रहा था।
दोपहर को जब छोटी आत्मा बादल और डूबते हुए सूरज को रंगने के लिए, पश्चिम की ओर उड़ गई, तो एक दुष्ट पक्षी जिसका नाम विली वैगटेल थाकेटरपिलर से बोला-

"तुम उड़ना क्यों नहीं सीखते?"

केटरपिलर ने पूछा "मैं कैसे उड़ सकता हूँ? मेरे तो पंख ही नहीं हैं।"

विली वैगटेल बोला,"अगर तुम मेरे साथ आओगे, तो मैं तुम्हें दिखाऊंगा कि पंख कैसे उग सकते हैं।

तो वह केटरपिलर को अपने साथ वहाँ ले गया जहां उसके हिसाब से जादू की झाड़ी थी और उसने कहा कि अगर केटरपिलर झाड़ी पर लगी सारी पत्तियां खा लेगा, तो उसके पंख उग आएँगे। विली वैगटेल ने केटरपिलर से पत्तियां खाने को कहा था,  उसका असली कारण यह नहीं था, लेकिन केटरपिलर ने उसकी बात पर विश्वास किया और रोज़ ढेर सारी पत्तियां खाने लगा। वह पंख उगाने के लिए इतना उत्सुक था कि वह पूरी- पूरी रात खाता, अभी भी हर रोज़ आत्मा के पास बहुत सारा काम करने को था। ऑरकिड्स के अलावा, बैरी जैसे छोटे फलों में भी रंग भरने थे, कुछ लाल रंग के, तो कुछ नीले और कुछ संतरी रंग के, कुछ बैंगनी भी थे। केटरपिलर दिन में बिरावै की मदद करता रहता और रात भर पत्तियां खाता रहता। वह बहुत ज़्यादा थकने लगा।

एक दिन, एक मकड़ा, जो छोटी झाड़ी के किनारे पेड़ पर रहता था,केटरपिलर से बोला,

"तुम इतनी मोटे हो गए हो, बहुत जल्दी तुम चल-फिर भी नहीं पाओगे और विली वैगटेल तुम्हें खा जाएगा।"

केटरपिलर ने कहा, "मैंने इस बारे में तो सोचा ही नहीं था, मैं कहाँ छिप सकता हूँ? क्या तुम मेरी मदद करोगे, प्लीज़?"

तो मकड़ा अपने पेड़ से नीचे उतरा और उसने केटरपिलर से कहा कि वह कुछ टहनियां सूखी पत्तियां लाए और उसने अपने जाले वाले बारीक धागे से जोड़ कर उसने एक थैला सा बुन दिया। उसने केटरपिलर से रेंग कर अन्दर आने को कहा, और उसने इस थैले को उस झाड़ी पर टांग दिया, जिसमें अब कोई भी पत्ती नहीं बची थी, और केटरपिलर को जल्दी ही नींद गई।

अब, मेलोंग देवता, जो गलत काम करने वालों को सज़ा देते थे, यह सब देख रहे थे और उन्हें लगा कि हर रोज़ बिरावै की मदद करने के लिए केटरपिलर को इनाम देना चाहिए, जब केटरपिलर सोया, तो मेलोंग देवता ने उसके ऊपर सुन्दर पंख लगा दिए। जब केटरपिलर सोकर उठा, तो वह इतना खुश हुआ कि वह अपने मित्र,  फूलों को रंगने वाली आत्मा की खोज में उड़ गया।

जब दुष्ट पक्षी विली वैगटेल यह देखने आया कि केटरपिलर खाने के लायक मोटा हो गया है, तो उसे वह कहीं नहीं मिला, जो कुछ उसे मिला, वह थी खाली झाड़ी जिसमें तो पत्तियां थीं और ही केटरपिलर।

मकड़े ने कहा, "यदि तुम केटरपिलर को ढूंढ रहे हो, तो वह अब उस तरफ है।"

यह कहकर उसने एक सुन्दर तितली की ओर इशारा किया जिसके पंखों में तरह-तरह के रंग थे, और जो एक फूल से दूसरे फूल पर उड़ रही थी।

विली वैगटेल ने कहा "पर ऐसा नहीं हो सकता, केवल उन पत्तियों को खाने से ही
उसके पंख नहीं उग सकते।"

मकड़े ने कहा "पत्तियों से नहीं, केटरपिलर उस छोटे से घोंसले में सोया और अगले दिन सुबह
उसके वे सुन्दर पंख निकल आए।"

विली वैगटेल ने कहा,"अच्छा" ! अगर केटरपिलर ऐसा कर सकता है, तो मैं भी ऐसा कर सकता हूँ।"

और तब से अब तक वह ऐसा कर रहा है, पर अब तक उसके तितली जैसे सुन्दर पंख नहीं हैं। तितली अब भी फूलों में रंग भरने में मदद करती है, पर इन दिनों वह बिरावै को अपनी पीठ पर बिठा कर लाने में भी मदद करती है।


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Hindi Translation for an Animation Film By Rekha Rajvanshi