Tuesday, April 12, 2016

होली की शाम March 2016

फिर आई होली की शाम
फिर आई होली की शाम
...
मन में बजने लगे ढोल और मृदंग
फिर से सजने लगे गोरिया के अंग
न भाए अब कोई काम 
फिर आई होली की शाम 

फागुन बौराया है रचता है छन्द
इठलाती फिरती है हवा मंद मंद
मुखरित है पूरा ही गाम 
फिर आई होली की शाम  



घर आँगन, चौबारे हुए हरे लाल
चेहरे से उतरे न प्रीत का गुलाल
रंग भरी अलसाई घाम 
फिर आई होली की शाम 



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