कोई मंज़र नज़र नहीं आता
क्यों मेरा घर नज़र नहीं आता
कितनी नफ़रत भरी है दुनिया में
कुछ भी बेहतर नज़र नहीं आता
लोरियाँ नींद लेके आ पहुँचीं
सुख का बिस्तर नज़र नहीं आता
सारे पैसों के
पीछे पागल हैं
घर कोई घर नज़र नहीं आता
इस क़दर बढ़ गई है मंहगाई
आस का दर नज़र नहीं आता
सरहदें तोड़ के घुस आया जो
क्यों वो लश्कर नज़र नहीं आता
अम्न की बात के ज़रा पीछे
तुमको ख़ंजर नज़र नहीं आता
रेखा राजवंशी
No comments:
Post a Comment