Friday, April 29, 2016

ग़ज़ल


कुछ किसी से कहें जनाब 
अच्छा है चुप रहें जनाब

दुनिया बेहद जालिम है
हंस के सब कुछ सहें जनाब

पत्थर से सख्त रहें
पानी बन के बहें जनाब

और कभी तो खोलें भी
अपने मन की तहें जनाब

कुछ तो मज़बूती रखिये
बालू से ढहें जनाब

खाली झोली क्यों देखें
जितना है, खुश रहें जनाब

Tuesday, April 12, 2016

कोई मंज़र नज़र नहीं आता - रेखा राजवंशी





कोई मंज़र नज़र नहीं आता
क्यों मेरा घर नज़र नहीं आता


कितनी नफ़रत भरी है दुनिया में
कुछ भी बेहतर  नज़र नहीं आता



लोरियाँ नींद लेके आ पहुँचीं
सुख का बिस्तर नज़र नहीं आता



सारे  पैसों  के पीछे पागल हैं
घर कोई घर नज़र नहीं आता



इस क़दर बढ़ गई है मंहगाई
आस का दर नज़र नहीं आता



सरहदें तोड़ के घुस आया जो
क्यों वो लश्कर नज़र नहीं आता



अम्न की बात के ज़रा पीछे
तुमको  ख़ंजर नज़र नहीं आता

रेखा राजवंशी 

होली की शाम March 2016

फिर आई होली की शाम
फिर आई होली की शाम
...
मन में बजने लगे ढोल और मृदंग
फिर से सजने लगे गोरिया के अंग
न भाए अब कोई काम 
फिर आई होली की शाम 

फागुन बौराया है रचता है छन्द
इठलाती फिरती है हवा मंद मंद
मुखरित है पूरा ही गाम 
फिर आई होली की शाम  



घर आँगन, चौबारे हुए हरे लाल
चेहरे से उतरे न प्रीत का गुलाल
रंग भरी अलसाई घाम 
फिर आई होली की शाम