This blog has my Hindi poems, articles and stories, mainly based on my migrant experiences in Australia. इस ब्लॉग में मेरी साहित्यिक रचनाएं हैं, आशा है सुधी पाठक पढ़ कर विचार व्यक्त करेंगे।
Sunday, November 6, 2011
Thursday, November 3, 2011
दर्द के पैबंद
आपसी रिश्तों के पीछे भी कई अनुबंध हैं।
-दोस्त बन दुश्मन मिले किसका भरोसा कीजिये
मित्र अपनी सांस पर भी अब यहाँ प्रतिबन्ध हैं ।
- तोड़ औरों के घरौंदे घर बसा बैठे हैं लोग
फिर शिकायत कर रहे क्यों टूटते सम्बन्ध हैं।
-दूसरों पर पाँव रखकर चढ़ रहे हैं सीढ़ियां
और कहते हैं उसूलों के बहुत पाबन्द हैं।
-दिन ज़रा अच्छे हुए तो आसमां छूने लगे
अब गरीबों के लिए घरबार उनके बंद हैं।
-रेखा राजवंशी
Wednesday, October 19, 2011
अबके दीवाली पर
अबके दीवाली पर एक दीप मेरा भी
..
एक दीप श्रृद्धा का एक दीप भक्ति का
एक दीप ममता का एक दीप शक्ति का
अबके दीवाली पर एक दीप मेरा भी
साथी तुम जलने दो, अँधियारा गलने दो
..
एक दीप ज्ञान का, एक दीप ध्यान का
स्त्री सम्मान का, भारत की शान का
अबके दीवाली पर एक दीप मेरा भी
साथी तुम जलने दो, अँधियारा गलने दो
..
अम्मा के मंदिर में, वीराने बंजर में
बाहर में अन्दर में, धरती में अम्बर में
अबके दीवाली पर एक दीप मेरा भी
साथी तुम जलने दो, अँधियारा गलने दो
..
गणपति जी बुद्धि दें, लक्ष्मी समृद्धि दें
हर घर में खुशियाँ हों, उद्भासित गलियाँ हों
अबके दीवाली पर एक दीप मेरा भी
साथी तुम जलने दो, अँधियारा गलने दो
..
रेखा राजवंशी
Friday, October 14, 2011
Thursday, September 1, 2011
मन वृन्दावन हो जाता
मन वृन्दावन हो जाता
भावों की फिर रिमझिम होती
मरुथल सावन हो जाता
एक आरती फिर जल जाती
अगर धूप की खुशबू आती
द्वार रंगोली फिर सज जाती
आँगन पावन हो जाता
सारे दर्द पिघल जाते
और सारे शिकवे मिट जाते
इस धरती से उस अम्बर तक
चन्दन-चन्दन हो जाता
चाँद सितारे फिर मुस्काते
सौ सन्देश तुम्हें पहुंचाते
चम्पा और चमेली खिलतीं
सुरभित जीवन हो जाता
हरसिंगार फिर झरने लगते
महक पुरानी भरने लगते
बजने लगती कहीं बांसुरी
सारा आलम खो जाता
पर तुम हो आवारा बादल
विरहिन की आँखों का काजल
अगर बरसते तो गंगाजल
मनवा दर्पण हो जाता
Sunday, August 14, 2011
मुक्तक स्वतंत्रता दिवस पर

जहां पर राम और रहमान पढ़ने साथ जाते हैं ।
जहां मिट्टी बनी पावन नानक, बुद्ध, गांधी से,
उसी भारत की यादों को कलेजे से लगाते हैं ।
..................
लगा तुलसी का एक पौधा वतन को याद करते हैं,
सजा मंदिर, खुदा से हम यही फ़रियाद करते हैं ।
कि मेरे देश की करना हिफाज़त राम और मौला,
कि कुछ आतंकवादी देश को बर्बाद करते हैं ।
बना कर शून्य जिसने ज्ञान अंकों का दिया जग को
सिखाकर ध्यान और योग बनाया स्वस्थ तन मन को ।
सुना कर धर्म वेदों का, पढ़ा कर कर्म गीता का,
नमन भारत तुझे करना सिखाया प्रेम दुश्मन को ।

..................
रेखा राजवंशी
Friday, June 24, 2011
सीख लिया
रातों की तन्हाई में अब दिल बहलाना सीख लिया
अश्कों की बारिश में भी हंसना मुस्काना सीख लिया
सावन की रिमझिम हो या फिर पतझड़ के वीराने हों
टूटे ख़्वाब पुराने हों या फिर मदमस्त तराने हों
जो भी मिले प्यार से सबको गले लगाना सीख लिया
रातों की तन्हाई में अब दिल बहलाना सीख लिया
अपने गम को क्या देखें जब दुनिया ही दीवानी है
कितने मासूमों के घर में उलझी हुई कहानी है
उजड़े हुए दयारों में इक दिया जलाना सीख लिया
रातों की तन्हाई में अब दिल बहलाना सीख लिया
तुम गिनते थे हीरे-मोती, या संपर्क अमीरों के
बहुत बुरे लगते थे तुमको आंसू, दर्द फकीरों के
उनके चिथड़ों पर मैंने पैबंद लगाना सीख लिया
रातों की तन्हाई में अब दिल बहलाना सीख लिया
-रेखा राजवंशी
Wednesday, June 8, 2011
my new poem मेरी नई ग़ज़ल
मेरी नई ग़ज़ल
बात पे बात बनाते क्यों हो
-
ज़ख़्म पिछले नहीं भरे अब तक
एक नई चोट लगाते क्यों हो
-
अनसुनी मेरी साफ़गोई कर
सिर्फ अपनी ही चलाते क्यों हो
-
मछलियों में भी जान होती है
आग पानी में लगाते क्यों हो
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लोग सुर को नहीं समझ पाते
बेसुरा साज बजाते क्यों हो
-
बच के तूफाँ से चले आए हैं
लाके साहिल पे डुबाते क्यों हो
-
नफरतों के बना के ताजमहल
झूठ के अश्क बहाते क्यों हो
-
रेखा राजवंशी
Wednesday, May 25, 2011
Another Aboriginal Story "The Coming of a Warrior"
Another Aboriginal Story "The Coming of a Warrior"
एक योद्धा का जन्म
एक छोटा लड़का था, जिसका नाम बंगाना था। रात में, जब उसके पिता शिकार करके वापस आते थे, वे अलाव के पास बैठ जाते थे और बंगाना को अपने शिकार के किस्से सुनाते थे। बाद में, बंगाना जब सोने जाता था तो एक बहादुर योद्धा के रूप में अपनी कल्पना करता था।
कल्पना करते करते जब वह सोता, तो देर हो जाती और सुबह चिड़ियों के चिल्लाने से उसकी आँख खुल जाती। तब बंगाना नीचे नदी तक जाता और धीरे से पानी में जाकर जंगली बतख या जल मुर्गी को पकड़ने की कोशिश करता। वह अपनी माँ और अन्य औरतों को पानी में खिले कमल के फूलों के बीच चलते हुए देख सकता था, और साथ ही उन्हें नदी में खाना ढूँढ़ते हुए भी देख सकता था। बंगाना ने कुछ जल मुर्गियों को पकड़ा और उन्हें अपनी माँ के पास ले गया व अपनी माँ के बटोरे हुए खाने के सामान में रख दिया। माँ की मदद करते हुए उसे अपने ऊपर गर्व हुआ और वह दुबारा सपने देखने लगा।
उसने सोचा, "अगर मैं बड़ा हो सकता और एक वीर योद्धा बन पाता, तो मैं भी अपने पिता की तरह बहादुर शिकारी बन जाता।"
जब बंगाना बैठ कर सपने देख रहा था, उसे लगा कोई उसे बुला रहा है।
"ऐ, बंगाना!"
वो बंगाना का दोस्त था, बंगाना अपने दोस्त के साथ खेलने के लिए भाग गया।
शाम को जब दूर पश्चिम में सूर्य डूबने लगा, बंगाना ने देखा कि दूर, ऊपर लाल रंग की धूल उड़ रही है, और उन लोगों की तरफ आ रही है। वो समझ गया कि तेज आंधी आने वाली है। आंधी से बचने के लिए उसने सबसे जल्दी से किसी आड़ में छिपने के लिए कहा। जब धूल भरी आंधी रुक गई, तो सब अपने-अपने कामों पर वापस चले गए।
रात से पहले बंगाना को अपने काम पूरे करने थे, अलाव के लिए लकड़ी इकट्ठी करनी थी। काम ख़त्म करके वह शाम को अपने पिता के शिकार से आने का इंतज़ार करने लगा।
जैसे-जैसे अन्धेरा छाने लगा, बंगाना शान्ति से बैठ गया, और पिता की वीरता की कहानियां सुनने को तैयार हो गया। बंगाना ने आग ठीक की जिससे वहां खूब सारे लाल कोयले तैयार रहें ताकि उसके पिता जो भी शिकार लाएं लाएं, उसे पकाया जा सके। जब छोटा बंगाना और उसकी माँ को अलाव के पास बैठे बहुत देर हो गई, तो बंगाना ने अपनी माँ के चेहरे पर चिंता की झलक देखी, उसे लगा कि कहीं कुछ ठीक नहीं है, बंगाना जल्दी से अपनी माँ के पास गया, और उससे बोला,
"माँ, चिंता मत करो, मैं जाऊँगा और पिता जी को ढूढ़ लाऊंगा। शायद उन्हें अपने शिकार को लाने के लिए मदद चाहिए होगी।"
बंगाना ने अपना छोटा भाला और बुंडी उठाई और रात के अँधेरे में चला गया। जब वह जंगल में आगे गया, तो उसे जंगल में डरावनी आवाजें सुनाई दीं और छोटा बंगाना डर गया, लेकिन वो चलता गया क्योंकि उसे पता था कि अगर उसे अपने पिता को ढूँढना है तो चलते जाना है। जब उसने पीछे देखा, उसे अलाव की रोशनी बहुत दूर धुंधली सी दिखाई दी। उसने सोचा कि अगर उसे अपने पिता की तरह शिकारी बनना है तो उसे बहादुर बनना चाहिए।
थोड़ी देर के बाद, बंगाना ने आराम करने के लिए एक सूखे हुए गोंद के पेड़ के नीचे एक सुरक्षित जगह खोजी। बंगाना बैठ गया और जल्दी ही उसे नींद आ गई। दूसरे दिन सुबह, बंगाना की नींद एक डिंगो (ऑस्ट्रेलिया का जंगली कुत्ता जो भेड़िया जैसा दिखता है और खतरनाक है) के चिल्लाने की आवाज़ से टूटी।
बंगाना डर के मारे उछल कर खड़ा हुआ, और उसे शीघ्र ही समझ में आया
कि वह सो गया था। वह कितनी देर तक सोया, यह उसे पता नहीं था। वह जंगल में और अन्दर गया, और रास्ते में उसने एक मरा पोसम (एक जानवर) देखा, जो भाले से बिंधा हुआ था। उसने ध्यान से उसे देखा और पहचान लिया कि पोसम उसके पिता के भाले से मरा था। वह मुस्कुराया, उसे पता चल गया था कि वह सही रास्ते पर था। छोटे बंगाना ने भागना शुरू किया, रास्ते में वह और निशान ढूंढता गया। तब, उसने दूर गुफाएँ देखीं, माना जाता था कि इनमें सपनों वाली आत्माएं रहती थीं। गुफाओं के पास हर जगह एक डरावना माहौल था। डर के मारे बंगाना की गर्दन के पीछे के रोएँ खड़े हो गए। लेकिन बंगाना को पता था कि अगर उसे अपने पिता को खोजना है तो डरना नहीं बढ़ना होगा, शीघ्र ही वह गुफाओं के पास पहुंच गया। जब वह पास पहुंचा, तो उसने ज़मीन पर किसी को पड़ा हुआ देखा, जो उसके पिता थे।
उसने कहा "पिताजी, आप ठीक तो हैं न?"
पिता ने बंगाना को देखा और आश्चर्य में पड़ गए।
वे बोले "बंगाना, तुम मुझे बचाने आए हो! शिकार करते हुए मैं गिर पड़ा और मेरा टखना टूट गया, तो मैं चल नहीं सकता था, पर तुमने मुझे ढूंढ निकाला। अब मैं ठीक हो जाउंगा, तुम एक बहादुर योद्धा हो जो अकेले यहाँ तक आए हो। मेरे छोटे बच्चे बंगाना, तुम अब बच्चे नहीं रहे , एक आदमी बन गए हो, एक योद्धा, और शिकारी भी बन गए हो, मुझे तुम पर गर्व है।"
पिता ने बंगाना को गले लगाया और उसका सहारा लेकर घर की तरफ चल पड़े।
Translated by Rekha Rajvanshi ( copyright ANA)
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