Wednesday, June 8, 2011

my new poem मेरी नई ग़ज़ल


मेरी नई ग़ज़ल 

मुझपे इल्ज़ाम लगाते क्यों हो 
बात पे बात बनाते क्यों हो
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ज़ख़्म पिछले नहीं भरे अब तक
एक नई चोट लगाते क्यों हो 
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अनसुनी मेरी साफ़गोई कर 
सिर्फ अपनी ही चलाते क्यों हो 
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मछलियों में भी जान होती है 
आग पानी में लगाते क्यों हो
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लोग सुर को नहीं समझ पाते 
बेसुरा साज बजाते क्यों हो 
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बच के तूफाँ  से चले आए हैं 
लाके साहिल पे डुबाते क्यों हो
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नफरतों के बना के ताजमहल 
झूठ के अश्क बहाते क्यों हो 
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रेखा राजवंशी 

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