मेरी नई ग़ज़ल
बात पे बात बनाते क्यों हो
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ज़ख़्म पिछले नहीं भरे अब तक
एक नई चोट लगाते क्यों हो
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अनसुनी मेरी साफ़गोई कर
सिर्फ अपनी ही चलाते क्यों हो
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मछलियों में भी जान होती है
आग पानी में लगाते क्यों हो
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लोग सुर को नहीं समझ पाते
बेसुरा साज बजाते क्यों हो
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बच के तूफाँ से चले आए हैं
लाके साहिल पे डुबाते क्यों हो
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नफरतों के बना के ताजमहल
झूठ के अश्क बहाते क्यों हो
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रेखा राजवंशी
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