Wednesday, February 11, 2015

बसंत,- रेखा राजवंशी


आया रे बसंत 
मन भाया रे बसंत
नव लय, नव गति
सुख लाया रे बसंत 

आम पर बौर आई
सरसों हरषाई
हरियाली देखो छाई
अब दिग-दिगंत

इठलाती है पवन
सुरभित उपवन
पुलकित हुआ तन
गीत गूंजे मन-मन

फूल मुस्काए
भँवरे मंडराए
ऋतुराज इठलाए
उड़ता है मकरंद

हाइकू
1. 
बसंत आया
कोयल की कुहुक
आम बौराया

2. 
पलाश फूला
पेड़ से बाँध दिया
रेशमी झूला

3. 
सुमन खिले
भँवरे मंडराए
दो दिल मिले

4. 
पीली-लुनाई
गोरी के नयनों में
खुमारी छाई

5. 
नीम बौराई 
सजनी इतराई
पिया को भाई

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