Thursday, November 20, 2014

ऑस्ट्रेलिया रंगेंगे- रेखा राजवंशी

आकाश, चाँद, सूरज सब कुछ हुआ हमारा
ऑज़ी शहर का मौसम लगने लगा है प्यारा 
 
काला, सफ़ेद, भूरा हर रंग सज रहा है
अपना तिरंगा लेकिन कुछ अलग जंच रहा है  

होटल में शेफ बने या हम बने टैक्सी ड्राइवर
न शर्म की किसी में इंजिनियर या क्लीनर 

पाई हैं नौकरियां मेहनत से पढ़ के हमने
आई टी हो या मेडिसिन आगे बढ़े हैं सबमें 

ले आए हम वतन की खुशबू में लिपटी बातें 
बटर चिकन तंदूरी चिकन, अब हर किसी को भाते

कान्हा की बांसुरी के सुर सजे डिजरी डू में   
गंगा है मरी रवर, अल्लाह हर इक सू में

कंगारूओं की दुनिया सबको रिझा रही है
यूरेनयम के बिक्री भारत को भा रही है

बॉलीवुड और क्रिकेट ने ऐसा चलाया जादू
हर दिल हुआ दीवाना, हर कोई है बेकाबू

चन्दन की महक लेकर, आती हैं जब हवाएं
लगता है माँ कहीं से, देती हमें दुआएं

होली, दीवाली क्रिसमस मिलकर मना रहे हैं
योग और मैडिटेशन सबको सिखा रहे हैं


अपने नए रंगों से ऑस्ट्रेलिया रंगेंगे
इतिहास सफलता का मिलकर नया रचेंगे

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