Thursday, November 3, 2011

दर्द के पैबंद

मखमली चादर के नीचे दर्द के पैबंद हैं
आपसी रिश्तों के पीछे भी कई अनुबंध हैं।

-दोस्त बन दुश्मन मिले किसका भरोसा कीजिये
मित्र अपनी सांस पर भी अब यहाँ प्रतिबन्ध हैं ।

- तोड़ औरों के घरौंदे घर बसा बैठे हैं लोग
फिर शिकायत कर रहे क्यों टूटते सम्बन्ध हैं।

-दूसरों पर पाँव रखकर चढ़ रहे हैं सीढ़ियां 
और कहते हैं उसूलों के बहुत पाबन्द हैं।

-दिन ज़रा अच्छे हुए तो आसमां छूने लगे
अब गरीबों के लिए घरबार उनके बंद हैं। 

-रेखा राजवंशी 

3 comments:

  1. रेखा जी इसी का नाम दुनिया है । यह शेर पसन्द आया-
    -दिन ज़रा अच्छे हुए तो आसमां छूने लगे
    अब गरीबों के लिए घरबार उनके बंद हैं।

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  2. -दिन ज़रा अच्छे हुए तो आसमां छूने लगे
    अब गरीबों के लिए घरबार उनके बंद हैं। bahut sundar
    Prabhudayal Shrivastava

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  3. अब गरीबों के लिए घरबार उनके लए बंद हैं
    बहुत सुंदर झकझोर

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