Sunday, May 8, 2011







माँ को खोना

कल रात खबर आई
माँ अब नहीं रही

सारे बंधन तोड़कर
सारे लगाव छोड़कर
वो अब चली गई ।

माँ जब नहीं रही
तो याद आती हैं उसकी बातें
उसके सुनाये किस्से, कहानी
कविताएं, मन्त्र और श्लोक
जो याद थे उसको जबानी
माँ अब नहीं रही, तो याद आते हैं 
माँ के बनाए, बेसन के लड्डू
मठरी और अचार 
दीवाली की गुझिया, 
होली के कांजी बड़े
पूर्णमासी का पंचामृत 
तीज त्योहार ।



माँ के दिए लड्डू गोपाल
मंदिर में बैठे-बैठे
जाने क्यों मुस्कुराते हैं
और उन्हें नहलाती
कपड़े पहनाती
भोग लगाती
भजन गुनगुनाती
माँ की याद दिलाते हैं ।

माँ अब नहीं है
तो याद आती हैं
माँ की अनगिन बातें
कितनी सूनी लगती हैं
विदेश में ये रातें ।

माँ जो चली गई
तो खाली हो गया मित्र
मन का एक कोना
इतना सरल नहीं है
कंगारूओं के देश में
माँ को यों खोना ।



 रेखा राजवंशी
2007


2 comments:

  1. रेखा जी, मातृ-दिवस पर आपकी यह कविता मां के प्रति आपकी भावनाओं का पवित्र उदगार ही है… मैंने भी मातृ दिवस पर अपने ब्लॉग 'सृजन-यात्रा' पर एक ग़ज़ल कही है- मां पर, समय मिले तो देखें और पढ़ें- लिंक है- www.srijanyatra.blogspot.com

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  2. MAA KO BADEE SHIDDAT SE AAPNE YAAD KIYA HAI.
    KAVITA MAN KO BHARPOOR CHHOOTEE HAI.

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