चांदनी
रात गहरी है
बिखरती जा रही है
कसक सी बन चांदनी।
रात ठहरी है
कि गुपचुप गा रही है
गीत जैसे चांदनी।
याद के दो पल
सितारे बन गए हैं
शब्द सारे
भाव में फिर बंध गए हैं
पीर मेरी
रात रानी बन बिछी है
तुम कहीं शायद चले आओ
कि तुम बिन
बावरी सी फिर रही है चांदनी।
रात गहरी है
बिखरती जा रही है
कसक सी बन चांदनी
वो गुज़रता वक्त
जैसे थम गया है
रात का दामन
महक से भर गया है
आज मन में
याद के गज़रे सजे हैं
तुम कहीं महसूस कर पाओ
कि तुम बिन
आग जैसी तप रही है चांदनी ।
रात गहरी है
बिखरती जा रही है
बिखरती जा रही है
कसक सी बन चांदनी।
रात ठहरी है
कि गुपचुप गा रही है
गीत जैसे चांदनी।
याद के दो पल
सितारे बन गए हैं
शब्द सारे
भाव में फिर बंध गए हैं
पीर मेरी
रात रानी बन बिछी है
तुम कहीं शायद चले आओ
कि तुम बिन
बावरी सी फिर रही है चांदनी।
रात गहरी है
बिखरती जा रही है
कसक सी बन चांदनी
वो गुज़रता वक्त
जैसे थम गया है
रात का दामन
महक से भर गया है
आज मन में
याद के गज़रे सजे हैं
तुम कहीं महसूस कर पाओ
कि तुम बिन
आग जैसी तप रही है चांदनी ।
रात गहरी है
बिखरती जा रही है
कसक सी बन चांदनी ।
रेखा राजवंशी
touched my heart
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