Saturday, December 20, 2014

अच्छा लगता है कभी-कभी!

अच्छा लगता है कभी-कभी
चुप्पियों से बातें करना
कुछ कहना, कुछ सुनना
हवाओं में कुछ गुनना

अकेलेपन से लड़ना
यादों में हुलसना 
अनुत्तरित प्रश्नों पर
बार-बार उलझना

 फिर अपने साए से
लिपट के सो जाना
फिजाओं में उड़ना
उड़ते-उड़ते खो जाना

हथेलियों पर बर्फ जमाने का
निरर्थक प्रयास करना
जो दीखता नहीं
उसका आभास करना

अच्छा लगता है कभी-कभी!
-रेखा राजवंशी 

Saturday, December 6, 2014

नई हवा


उगी कोंपले हरी-हरी, बिखरे हैं पीले पात
अब तो साथी बहना होगा, नई हवा के साथ

मंदिर की घंटी के बदले, चले वीडियो गेम
और तरक्की के बदले, अब बिक जाता है प्रेम
फूल, सितारे, जुगनू, चंदा बतलाते हालात
अब तो यूँ ही रहना होगा, नई हवा के साथ





विज्ञापन की दुनिया में फीके पड़ते अखबार
बनावटी चीज़ों में जैसे दबे सभी त्यौहार
घर की बूढ़ी काकी पूछे, दिन है या है रात
मन में सब कुछ सहना होगा, नई हवा के साथ




चमक-दमक में डूब गए शहरो के क्लब व बार
हाला, हल्ला, हंगामा है मनोरंजन का सार
फ़िल्मी बनी ज़िन्दगी, झूठी लगती सबकी बात
कुछ न किसी से कहना होगा, नई हवा के साथ

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