रात के सन्नाटे में, जब झरने लगते हैं
यादों के हरसिंगार!
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मन का बैरागीपन, फिर भरने लगते हैं
बातों के हरसिंगार!
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इठलाती तितली बन, फिर उड़ने लगते हैं
ख़्वाबों के हरसिंगार!
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बीते पल, बीते कल, फिर जुड़ने लगते हैं
वादों के हरसिंगार!
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तुम
थे कि तुम न थे, कुछ कहने लगते हैं
भावों
के हरसिंगार!
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-रेखा राजवंशी
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