Sunday, January 13, 2013

हरसिंगार--रेखा राजवंशी






रात के सन्नाटे में, जब झरने लगते हैं
यादों के हरसिंगार! 
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मन का बैरागीपन, फिर भरने लगते हैं 
बातों के हरसिंगार! 
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इठलाती तितली बन, फिर उड़ने लगते हैं 
ख़्वाबों के हरसिंगार!
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बीते पल, बीते कल, फिर जुड़ने लगते हैं 
वादों के हरसिंगार! 
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तुम थे कि तुम न थे, कुछ कहने लगते हैं  
भावों के हरसिंगार!
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-रेखा राजवंशी 

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