Monday, January 21, 2013

मेरे पहले काव्य संगृह 'अनुभूति के गुलमोहर' से दो कविताएं


1.

गुलमोहर 

ये लाल गुलमोहर 
मुझे याद दिलाता है 
वो लाल रंग 
जो अचानक 
तुम्हारी आँखों में समा गया था 
अंतिम मुलाकात बन 
जाने क्यों हर ओर 
गम ही गम छा गया था 
.
और मैं देखती रही 
आकाश में पैदा होते 
और विलीन हो जाते इन्द्रधनुष को। 
.
कि मैं नहीं चाहती 
इन्द्रधनुष के रंगों को तकना 
बिखरे तिनकों को चुनना 
और तुम्हारी आवाज़ को सुनना 
..
कि मेरा अस्तित्व मेरा अपना है 
कि जला डालती है मुझे 
गुलमोहर के लाल रंग से
बरसती आग 
कि मुझे प्रतीक्षा है 
गुलमोहर मुरझाने की 
और कुछ न पाकर फिर 
'कुछ' तो पा जाने की 
.
-रेखा राजवंशी 

किरच 

चटके शीशे की किरच की तरह 
न जाने कहाँ का ग़म 
दिल में आकर चुभ गया है 
महसूस तो करती हूँ बेपनाह दर्द 
और उसे निकाल फेंकने के लिए 
लगा देती हूँ शक्ति!
परन्तु किरच 'किरच' है 
छोटी बारीक़ और पारदर्शी 
बहते हुए रक्त में रंगी हुई लाल 
जो निकालने के प्रयास में 
 अन्दर की ओर समाती जा रही है 

कि जैसे यह दर्द, यह टीस  
तुम्हारी यादों के 
फूलों के गुच्छे की महक सी 
मेरे अस्तित्व से जुड़ गई है 
और जाने कब ये किरच 
मेरे समूचे अस्तित्व का 
एक हिस्सा बन गई है। 
.
-रेखा राजवंशी 1995

Sunday, January 13, 2013

हरसिंगार--रेखा राजवंशी






रात के सन्नाटे में, जब झरने लगते हैं
यादों के हरसिंगार! 
.
मन का बैरागीपन, फिर भरने लगते हैं 
बातों के हरसिंगार! 
.
इठलाती तितली बन, फिर उड़ने लगते हैं 
ख़्वाबों के हरसिंगार!
.
बीते पल, बीते कल, फिर जुड़ने लगते हैं 
वादों के हरसिंगार! 
.
तुम थे कि तुम न थे, कुछ कहने लगते हैं  
भावों के हरसिंगार!
.
-रेखा राजवंशी 

Wednesday, January 2, 2013

नए साल ने जैसे ही कुंडी खड़काई



बाजारों में सजी दुकानें
बार, पबों में रौनक छाई
नए साल ने
जैसे ही कुंडी खड़काई
.
शॉपिंग मॉल सजे दुल्हन से
ख़ुशी छलकती तन से, मन से
लूट मची है दूकानों में
भरें तिजोरी खाली, धन से
बार-बी-क्यू की खुशबू फैली
सबके मन को भाई
नए साल ने
 जैसे ही कुंडी खड़काई
.
 कुछ पीकर के मस्त हो गए
बार गली में व्यस्त हो गए
नाईट क्लबों में डांस कर रहे
जोड़े थककर ध्वस्त हो गए
सजी-धजी संध्या बाला ने
फिर से ली अँगड़ाई
नए साल ने
जैसे ही कुंडी खड़काई
.
 कुछ ड्रग खा ग़म भूल रहे हैं
सपन लोक में झूल रहे हैं
कुछ ‘गे’ जोड़े ‘किस’ करने में
कोने में मशगूल रहे हैं
लिये हाथ में बियर की बोतल
खड़े हुए सौदाई
नए साल ने जैसे ही कुंडी खड़काई
.
पिकिनक सारे लोग मनाते
फायर वर्क्स देखने आते
नए साल का स्वागत करने
हार्बर ब्रिज भरपूर सजाते
सिडनी वासी उमड़ पड़े ले
खाना और चटाई
नए साल ने
 जैसे ही कुंडी खड़काई
.
 रेखा राजवंशी
३१ दिसंबर २०१२