1.
गुलमोहर
ये लाल गुलमोहर
मुझे याद दिलाता है
वो लाल रंग
जो अचानक
तुम्हारी आँखों में समा गया था
अंतिम मुलाकात बन
जाने क्यों हर ओर
गम ही गम छा गया था
.
और मैं देखती रही
आकाश में पैदा होते
और विलीन हो जाते इन्द्रधनुष को।
.
कि मैं नहीं चाहती
इन्द्रधनुष के रंगों को तकना
बिखरे तिनकों को चुनना
और तुम्हारी आवाज़ को सुनना
..
कि मेरा अस्तित्व मेरा अपना है
कि जला डालती है मुझे
गुलमोहर के लाल रंग से
बरसती आग
कि मुझे प्रतीक्षा है
गुलमोहर मुरझाने की
और कुछ न पाकर फिर
'कुछ' तो पा जाने की
.
-रेखा राजवंशी
किरच
चटके शीशे की किरच की तरह
न जाने कहाँ का ग़म
दिल में आकर चुभ गया है
महसूस तो करती हूँ बेपनाह दर्द
और उसे निकाल फेंकने के लिए
लगा देती हूँ शक्ति!
परन्तु किरच 'किरच' है
छोटी बारीक़ और पारदर्शी
बहते हुए रक्त में रंगी हुई लाल
जो निकालने के प्रयास में
अन्दर की ओर समाती जा रही है
कि जैसे यह दर्द, यह टीस
तुम्हारी यादों के
मेरे समूचे अस्तित्व का
फूलों के गुच्छे की महक सी
मेरे अस्तित्व से जुड़ गई है
और जाने कब ये किरच
एक हिस्सा बन गई है।
.
-रेखा राजवंशी 1995