Sunday, November 4, 2012

इक दीप जलाए बैठे हैं


कुछ ज़ख्म छिपाए बैठे हैं
कुछ दर्द दबाए बैठे हैं
..
सूखे फूलों की खुशबू में
कुछ ख़्वाब सजाए बैठे हैं
..
वो शायद वापिस आ जाएं
खुद को समझाए बैठे हैं
..
ये दिल है संगोखिश्त नहीं
क्यों गम ये लगाए बैठे हैं
..
इन बेगानों की बस्ती में
क्या बीन बजाए बैठे हैं
..
अंधियारा डस लेगा मन को
इक दीप जलाए बैठे हैं
....
रेखा राजवंशी

1 comment:

  1. "अंधियारा डस लेगा मन को
    इक दीप जलाए बैठे हैं "
    वाह वाकई खूब लेख अपने आप को किसी तरह जिंदा रखने की कसमकश ...........
    मेरे ब्लाग पर आपका स्वागत है
    हैकिंग हिंदी में सीखो

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