आईने
का हर टुकड़ा
आईने
का हर टुकड़ा, आंसू बहा रहा है
भूला हुआ फ़साना फिर याद आ रहा है
बरसा नहीं था बरसों, बादल भरा हुआ था
बेबाक बारिशों में अपनी नहा रहा है
तरसे जो चांदनी को, वो लोग भी अजब हैं
अब चाँद मिल गया तो, उनको जला रहा है
ताबूत में दबाकर, रख दी थी जो तमन्ना
किसका ख्याल उसमें हलचल मचा रहा रहा है
उसने की आशनाई, उसने की बेवफाई
फिर क्यों मुझे ज़माना कातिल बता रहा है
रेखा राजवंशी
सिडनी ऑस्ट्रेलिया
भूला हुआ फ़साना फिर याद आ रहा है
बरसा नहीं था बरसों, बादल भरा हुआ था
बेबाक बारिशों में अपनी नहा रहा है
तरसे जो चांदनी को, वो लोग भी अजब हैं
अब चाँद मिल गया तो, उनको जला रहा है
ताबूत में दबाकर, रख दी थी जो तमन्ना
किसका ख्याल उसमें हलचल मचा रहा रहा है
उसने की आशनाई, उसने की बेवफाई
फिर क्यों मुझे ज़माना कातिल बता रहा है
रेखा राजवंशी
सिडनी ऑस्ट्रेलिया
July 2012

rekha ji aap paraye desh men rahte huye hindi ka itna samman... sadhuvad. rachna achhi hai...
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