Saturday, November 10, 2012

प्रिय मित्रों, दीपावली की शुभकामनाएं


आशा है आप इस कार्यक्रम का आनंद उठाएंगे.

Sunday, November 4, 2012

इक दीप जलाए बैठे हैं


कुछ ज़ख्म छिपाए बैठे हैं
कुछ दर्द दबाए बैठे हैं
..
सूखे फूलों की खुशबू में
कुछ ख़्वाब सजाए बैठे हैं
..
वो शायद वापिस आ जाएं
खुद को समझाए बैठे हैं
..
ये दिल है संगोखिश्त नहीं
क्यों गम ये लगाए बैठे हैं
..
इन बेगानों की बस्ती में
क्या बीन बजाए बैठे हैं
..
अंधियारा डस लेगा मन को
इक दीप जलाए बैठे हैं
....
रेखा राजवंशी

Tuesday, October 2, 2012

पैरामैटा में बाजा बजाने वाला- 4 glimpses


मित्रों, 
हिंदी दिवस पर मेरे नए काव्य संगृह का सिडनी में विमोचन हुआ. लोकप्रिय  कवि अशोक चक्रधर जी ने इसकी भूमिका लिखी है उसके लिए उनका धन्यवाद. ऑस्ट्रेलिया की विभिन्न अनुभूतियों का संगृह है ये पुस्तक. बाजे वाले को देखना, सुनना एक अलग सी अनुभूति है, जब मैंने ये कविता लिखी थी तब से अब तक जाने कितने बाजे वाले बदल गए, यही है न ज़िन्दगी.  

 बिम्ब एक


बाजा बजाने वाला

वो आदमी
जो पैरामैटा  में 
वेस्टफील्ड के सामने
रेल के पुल के नीचे बैठ
बाजा बजाता है
कुछ नहीं बोलता
कला को
पैसे से नहीं तोलता
खुश रहता है
जो कुछ मिल जाता है


कुछ लोग चलते-चलते
रुक जाते हैं
उसे देखने के लिए
झुक जाते हैं
अपनी जेबें टटोलते हैं
मन ही मन
जाने क्या बोलते हैं
और एक सिक्का डाल देते हैं
बाजे वाले के सामने
बिछी चादर पर


कुछ छोटे बच्चे
माँ का हाथ थामें
चलते -चलते 
ठिठक कर देखते हैं
अनायास
उनके भोले चेहरे पर
उभर आती है
मुस्कान की रेखा
पता नहीं की बाजे वाले ने
इसे देखा या न देखा

कुछ नए जोड़े
जो कर नहीं पाते
बाजे वाले को अनदेखा
उसके संगीत को
सराहते हैं
कुछ और समीप
हो जाते हैं
हाथ में हाथ थामे
रोमांटिक हो
गुनगुनाते हैं


कुछ वृद्ध
जो पास पडी
बैंच पर बैठ जाते हैं
वे न जाने क्या सोचते हैं
जाने किस अतीत में
खो जाते हैं


और वो व्यक्ति
जो बाजा बजाता है
कोई प्रतिक्रया
नहीं जताता है
न खुशी, न दुःख
उसके चेहरे पर
कोई भी भाव
नहीं आता है
.......


  बिम्ब दो


बाजा बजाने वाला

सोचती हूँ
वो बाजा बजाने वाला
सबका मन बहलाने वाला
आखिर वो है कौन?
क्या उसका परिवार है?
यदि है तो कहाँ उसका घरबार है?


क्या वह बाजा बजाकर
कमाने को मजबूर है?
या फिर कला-प्रदर्शन के
नशे में चूर है?


या मनोरंजन करना
उसको भाता है
कितने बजे तक आखिर
वो बाजा बजाता है?
और किस समय वो
घर वापिस जाता है?


ये अनेकानेक प्रश्न
दिमाग में आते हैं,
पर बाज़ार में जाते ही
दुकानों की
चकाचौंध के बीच
गुम हो जाते हैं
और बाजे वाला
बन जाता है
वेस्टफील्ड की
एक दुकान मात्र
.......



 बिम्ब तीन 

बाजा बजाने वाला

पैरामैटा में
वेस्टफील्ड के सामने
रेल के पुल के नीचे
बाजा बजाने वाला
अब नहीं आता
जीवन की भागदौड़ में
किसी का भी  ध्यान
इस ओर नहीं जाता

पुल के नीचे का यह कोना
खाली हो या भरा
कोई फर्क नहीं पड़ता
या आपा-धापी में
लोगों का
बाजा बजने, न बजने से
कुछ नहीं बिगड़ता

वो कोना
जहां बाजे वाला
बैठता था
रीता, सुनसान सा
लगता है
न वहां अब कोई
बच्चा ठिठकता है
न कोई जोड़ा रुकता है

जाने कब हम
किसी के होने न होने के
अभ्यस्त हो जाते हैं
अपनी दिनचर्या में इतने
व्यस्त हो जाते हैं
कि किसी के जाने के बाद
उसे भूल जाते हैं
और अपनी ज़िंदगी में
मशगूल हो जाते हैं ।
..........

 बिम्ब चार


बाजा बजाने वाला

पैरामैटा में
वेस्टफील्ड के सामने
रेल के पुल के नीचे
खाली कोने में
फिर गूँज उठी है आज
बाजे की मधुर आवाज़

लोग मुस्कुरा रहे हैं
अपनी पसंद के गीतों को
साथ-साथ गुनगुना रहे हैं

कौतूहल से देखती हूँ
अरे बाजे वाला आ गया?
ऐसा लगा कुछ खोया
फिर वापिस पा गया

पास जाती हूँ तो पाती हूँ
एक खूबसूरत नौजवान
उसी कोने में बैठा
बाजा बजा रहा है
और हर आते-जाते को
रिझा रहा है

तो शायद
किसी का जाना
और किसी का आना
जीवन की सच्चाई है
बाजे वाले ने यह बात
कितनी आसानी से
समझाई है
.........


Sunday, August 26, 2012

आईने का हर टुकड़ा

आईने का हर टुकड़ा



आईने का हर टुकड़ा, आंसू बहा रहा है
भूला हुआ फ़साना फिर याद आ रहा है

बरसा नहीं था बरसों, बादल भरा हुआ था
बेबाक बारिशों में अपनी नहा रहा है  






तरसे जो चांदनी को, वो लोग भी अजब हैं
अब चाँद मिल गया तो, उनको जला रहा है

 

ताबूत में दबाकर, रख दी थी जो तमन्ना
किसका ख्याल उसमें हलचल मचा रहा रहा है

उसने की आशनाई, उसने की बेवफाई
फिर क्यों मुझे ज़माना कातिल बता रहा है
 


रेखा राजवंशी
सिडनी ऑस्ट्रेलिया

July 2012

Sunday, July 29, 2012

मेरे कुछ नए शेर




1.      ख़्वाब किसके हंसी जले होंगे
अब जो हर ओर धुंआ
उठता
है
........
2.    तुम जो आए तो रौशनी आई
वर्ना
कटती रही अँधेरे में 
...... 
3.    तेरे आने पे अजब आलम है
आँख कहती है जुबाँ चुप सी है
...... 
4    जब भी देखो वो चले आते हैं
    भरते ज़ख्मों को दुखाने के लिए
...... 
5.    इस कदर दर्द ने मजबूर किया
वर्ना हम दर पे तेरे न आते 
...... 
6.    किन गुनाहों की तुम सजा दोगे
हंसने वाले को फिर
 रुला दोगे
...... 
7.    तुम जो आए तो रौशनी आई
वर्ना जीते रहे अँधेरे में
...... 
8.    तेरे गजरे के मोंगरे की महक
रात मुश्किल से कटेगी मेरी
...... 
9.  तेरे हाथों में भरे ख्वाबों ने
कुछ सितारे नए बना डाले
...... 
10.  जुगनू कितने निकल पड़े होंगे
तेरे रस्ते में रौशनी के लिए
...... 
11.  चल चलें दूर कि दुनिया वाले
बात कोई नई बना लेंगे
...... 
        

       रेखा राजवंशी
सिडनी, ऑस्ट्रेलिया
  

सिडनी, ऑस्ट्रेलिया