ऑस्ट्रेलियाई पाठ्यक्रम में हिन्दी जोड़ने के लिए अभियान
इन दिनों ऑस्ट्रेलियावासी भारतीय समुदाय में इस बात को लेकर खलबली मची हुई है कि नए राष्ट्र स्तरीय 'भाषा पाठ्यक्रम(अकारा ACARA -Australian Curriculum Assessment and Reporting Authority) में हिन्दी का कहीं नामोनिशान नहीं है । इस पाठ्यक्रम में भाषा पाठ्यक्रम ड्राफ्ट किया गया है और इसमें अंग्रेज़ी के अतिरिक्त ग्यारह सामुदायिक भाषाएँ रखी गई हैं, जिन्हें छात्र वैकल्पिक विषय के रूप में पढ़ सकते हैं। इन भाषाओं का चयन देश में भाषा की मांग के आधार पर किया गया है, चूँकि भारतीय अंग्रेजी समझ व बोल लेते हैं इसलिए भारतीय भाषाओं को इसमें नहीं जोड़ा गया है ।
ये भाषाएँ तीन अवस्थाओं में विकसित की जाएंगी, पहली अवस्था में चाइनीज़ और इटालियन भाषाओं को चुना गया है, इनके चुनने का आधार है कि वे अंग्रेज़ी के अतिरिक्त देश की प्रमुख भाषाएँ हैं और बहुत संख्या में छात्र इनका अध्ययन करते हैं । दूसरी अवस्था में सम्मिलित होने वाली भाषाएँ हैं - फ्रेंच, जरमन, इंडोनेशियन , कोरियन और स्पेनिश । इनको चुनने के पीछे जो तर्क दिया गया है उसके अनुसार ये भाषाएँ ऑस्ट्रेलया के विद्यालयों में पहले से पढ़ाई जा रही हैं और और वैश्विक स्तर पर महत्वपूर्ण हैं । तीसरी अवस्था में विकसित होने वाली भाषाओं में शामिल हैं- ग्रीक, अरबी और वियतनामी । इनको पाठ्यक्रम में इसलिए रखा गया है क्योकि ये ऑस्ट्रेलिया निवासियों के घरों में बोली जाती हैं ।
भारतीय समुदाय का कहना है कि सर्वाधिक बोले जाने वाली भाषाओं में हिन्दी का स्थान दूसरा है, और हिन्दी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी महत्वपूर्ण है अतः हिन्दी को भी पाठ्यक्रम में स्थान मिलना चाहिए । पहली बार ऑस्ट्रेलिया के समस्त प्रान्तों के लोग प्रादेशिक भाषाओं को बीच में न लाते हुए इस मुद्दे को लेकर एकमत हुए हैं कि हिन्दी भी अन्य भाषाओं की तरह ही पाठ्यक्रम का एक भाग होना चाहिए । ‘ऑस्ट्रेलिया हिंदी कमेटी’ के नाम से एक कमेटी का गठन किया गया है, और सामूहिक अपील की कोशिश की जा रही है, यह अपील अगले सप्ताह जमा की जाएगी । अब तक अकारा की वेबसाईट पर फीडबैक की सुविधा भी उपलब्ध है, जिसमें सैकड़ों ऑस्ट्रेलियन भारतीयों ने अपने विचार व्यक्त किये हैं ।
ऑस्ट्रेलियन सरकार भी हिन्दी के महत्त्व को जानती है, इसीलिए शनिवार को चलने वाले कम्युनिटी लैंग्वेज स्कूल्स में हिन्दी को स्थान भी दिया गया है, परन्तु राष्ट्रीय स्तर पर दैनिक विद्यालयों में हिन्दी को स्थान नहीं मिल पाया है. इसके पीछे कुछ कारण हो सकते हैं, एक तो भारतीयों के घरों में बोले जाने वाली अनेक क्षेत्रीय भाषाएँ, दूसरे जनसंख्या गणना के समय प्रदान की गई सूचना में संकोच या शर्म के कारण भारतीयों द्वारा हिन्दी का उल्लेख न करना व भारतीयों की अंग्रेज़ी अच्छी होना । जो भी हो पर खुशी इस बात की है कि सम्पूर्ण ऑस्ट्रेलिया के भारतीय अपनी भाषा को पाठयक्रम में स्थान दिलाने को लेकर चेत गए हैं तथा आशा है कि उनकी सामूहिक आवाज़ सरकार के कानों तक अवश्य पहुंचेगी ।
इस बारे में जो भी परिणाम होगा आपको उससे अवगत कराया जाएगा ।
रेखा राजवंशी
सिडनी, ऑस्ट्रेलिया