बादलों के डाकिये के साथ फिर
भेजनी हैं आज तुमको चिट्ठियाँ
नदी नाले और पर्वत पार कर
प्रेम की गंगाजली की धार पर
काल की सीमा समय को काट कर
दर्द की कुछ बदलियों को छाँट कर
बादलों के डाकिये के साथ फिर
भेजनी हैं आज तुमको चिट्ठियाँ
हीर के उस इश्क के अंदाज़ में
जूलियट के दर्द के अल्फ़ाज़ में
सावनी रिमझिम के मोती टांक कर
चूम अधरों से उसे फिर ढांक कर
बादलों के डाकिये के साथ फिर
भेजनी हैं आज तुमको चिट्ठियाँ