Wednesday, September 1, 2021

चिट्ठियाँ - रेखा राजवंशी

 

 

बादलों के डाकिये के साथ फिर 

भेजनी हैं आज तुमको चिट्ठियाँ

 

नदी नाले और पर्वत पार कर

प्रेम की गंगाजली की धार पर 

काल की सीमा समय को काट कर

दर्द की कुछ बदलियों को छाँट कर

 

बादलों के डाकिये के साथ फिर 

भेजनी हैं आज तुमको चिट्ठियाँ

 

हीर के उस इश्क के अंदाज़ में

जूलियट के दर्द के अल्फ़ाज़ में

सावनी रिमझिम के मोती टांक कर

चूम अधरों से उसे फिर ढांक कर 

 

बादलों के डाकिये के साथ फिर 

भेजनी हैं आज तुमको चिट्ठियाँ

 

 

 

Sunday, August 15, 2021

मेरी नई किताब - ये कितनी बार होता है


 


बहुत छोटी बहर की ग़ज़ल - रेखा राजवंशी






पास आओ तो ज़रा
मुस्कुराओ तो ज़रा

-रात भी गाने लगे
गुनगुनाओ तो ज़रा

-शाम है तन्हा बहुत
साथ आओ तो ज़रा

-कौन जीता है सदा
ये बताओ तो ज़रा

-यूँ न रूठो हमसे तुम
मान जाओ तो ज़रा

-है मुहब्बत गर तुम्हें
तो जताओ तो ज़रा
-रेखा राजवंशी

Monday, March 1, 2021

किताबघर प्रकाशन से मेरी कहानियों की पहली किताब

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