Saturday, June 6, 2020

नवगीत
पतझड़
रेखा राजवंशी


आज हवा ने फिर पतझड़ पर
लिक्खे गीत नए
पत्ते ताली बजा बजा कर
ढूंढें मीत नए

बौराए बादल ने भी रच डाला अपना राग
सूर्यदेव ने धीमी कर दी वहां गैस की आग
शाम आज कुछ जल्दी आई
रस्ते रीत गए
आज हवा ने फिर पतझड़ पर
लिक्खे गीत नए


चंदा ने अपने दरवाज़े बंद कर लिए कैसे
जला अंगीठी बैठे तारे हाथ सेंकते जैसे
रात बहुत सन्नाटा लाई
जुगनू जीत गए
आज हवा ने फिर पतझड़ पर
लिक्खे गीत नए


वार्डरोब से याद तुम्हारी चुपके चुपके आई
कैडबरीज सी मीठी जाने कितनी यादें लाई
सोचे मन कि बिना तुम्हारे
बरसों बीत गए
आज हवा ने फिर पतझड़ पर
लिक्खे गीत नए