Tuesday, January 26, 2016

परदेस में छब्बीस जनवरी

कि इस परदेस में जब जनवरी छब्बीस आती है
तो.. अपने वतन की कितनी यादें साथ लाती है
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ये आजादी जो पाई है बड़ी कीमत चुकाई है

जाने कितने भी वीरों ने यहां पर जां गवाई है

बड़ी मुश्किल से मां की बेड़ियों को सब ने काटा था

फिरंगी शत्रु ने फिर भी हमारा देश बांटा था

कि वंदे मातरम की धुन यही गाथा सुनाती है

कि इस परदेस में जब जनवरी छब्बीस आती है



वो होली और दीवाली, कि ईदी सेवियों वाली
वो रावण दशहरे वाला, गली वो राखियों वाली
वो झूले झूलना, वो खेलना शतरंज की बाजी
शरारत पर पिता का डांटना कहना मुझेपाजी’
कहानी की परी जब-जब छड़ी अपनी घुमाती है
तो अपने वतन की ये कितनी यादें साथ लाती हैकि इस परदेस में जब जनवरी छब्बीस आती है


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याद आता है छत पर जा, पतंगों को उड़ाना भी
स्कूलों में तिरंगा फहरना,  नारे लगाना भी
कि माँ का आलू, पूरी और हलवे को बनाना भी
कि इमली और चूरन के लिए पैसे चुराना भी
कि बचपन के सभी किस्से कहानी साथ लाती है
कि इस परदेस में जब जनवरी छब्बीस आती है
तो अपने वतन की ये कितनी यादें साथ लाती है


रेखा राजवंशी, 
सिडनी ऑस्ट्रेलिया