Sunday, November 1, 2015

ग़ज़ल - बच्चे सी लहर


एक बच्चे सी लहर आई है
तेरी यादों की सहर लाई है

वो ज़ियादा ही हंसा करता है
दिल में उसके कहीं तन्हाई है


जी रहा है जो गैर की खातिर 
उसके आंसू में भी सच्चाई है 
  
ये समंदर उछल रहा है जो
चांद से उसकी शनासाई है 


बीते लम्हों को मांगने आया
वो तो आशिक नहीं सौदाई है


करते जो गैर का चर्चा सबसे
कम नहीं उनकी भी रुसवाई है  

और पत्थर इसे नहीं मारो
ये दीवाना नहीं,  शैदाई है