Sunday, May 10, 2015

कि माँ की याद फिर आई

कि माँ की याद फिर आई 
कि फिर चहका है मन आँगन 
कि मन की शुष्क मिट्टी में 
बरस उट्ठा कोई सावन 
कि फिर से मोगरे महके
कि लौट आया मेरा बचपन!


दीवाली की वो फुलझड़ियाँ
या तेरे हाथ की गुझियाँ

वो करवाचौथ की थाली
अहोई गुलगुलों वाली
न जाने कितने अफ़साने
सुनाने लग गया ये मन

कि मेरे फर्स्ट आने की
फ़िकर में रात भर जगना
नज़र बट्टू लगा कर
नौकरी की प्रार्थना करना 
दुआओं में बरसता है 
अभी तक प्यार का चन्दन!

फिर मेरा ब्याह कर देना
पराए घर विदा करना
कि मेरी खैरियत हर वक्त
चिट्ठी से पता करना
न अपना दुःख बताना
झेलना हर बात पत्थर बन!

मेरा परदेस में रहना
तेरा चुप रह के सब सहना 
कि फिर इक दिन खबर आना
मेरा कुछ भी न कर पाना 
कि तेरा यूँ चले जाना

झटक कर प्यार के बंधन!

कि माँ की याद फिर आई 

महक उट्ठा है मन आँगन!