लोग बातें बनाने लगे हैं,
सबको नीचा दिखाने लगे हैं
कल हुए थे जो पैदा वो पौधे,
खुद को बरगद बताने लगे हैं
कांच के घर में जो रह रहे हैं,
देखो पत्थर उठाने लगे हैं
जेब में चार पैसे जो आए,
आँख सबको दिखाने लगे हैं
पहले ऊँगली पकड़ चल रहे थे,
आज दुनिया चलाने लगे हैं
नाम का दोस्त ऐसा नशा हैं,
अपनों को ही भुलाने लगे हैं
बन के जुगनू चमकते थे अब तक,
खुद को सूरज बताने लगे हैं
जिसको सीढ़ी बनाकर चढ़े थे,
अब उसी को गिराने लगे हैं
रूठकर जा रहे हैं वो जिनको,
लौटने में ज़माने लगे हैं
सबको नीचा दिखाने लगे हैं
कल हुए थे जो पैदा वो पौधे,
खुद को बरगद बताने लगे हैं
कांच के घर में जो रह रहे हैं,
देखो पत्थर उठाने लगे हैं
जेब में चार पैसे जो आए,
आँख सबको दिखाने लगे हैं
पहले ऊँगली पकड़ चल रहे थे,
आज दुनिया चलाने लगे हैं
नाम का दोस्त ऐसा नशा हैं,
अपनों को ही भुलाने लगे हैं
बन के जुगनू चमकते थे अब तक,
खुद को सूरज बताने लगे हैं
जिसको सीढ़ी बनाकर चढ़े थे,
अब उसी को गिराने लगे हैं
रूठकर जा रहे हैं वो जिनको,
लौटने में ज़माने लगे हैं
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रेखा राजवंशी