Monday, July 28, 2014

ईद की रात












शाम चुपचप ढलती जाती  है
तुम्हारी बात चलती जाती  है  

आँख को न था हादसों पे यकीं
न वो हंसती, न रोने पाती  है

देख के चंद सितारों का रुख
कश्ती तूफ़ाँ में बढ़ती जाती है

लेके हाथों में वो सूखे गज़रे
ज़िंदगी ग़ज़ल गुनगुनाती है  

तुमसे मिलने का, बिछड़ने का सबब,
 दुनिया पूछे तो मुस्कुराती है

वो जो आएं, तो मेरा चाँद आए,
 ईद आती है, चली जाती है  

रेखा राजवंशी