Monday, June 23, 2014

फूल की रंगीन महक











सर्द रातों में सदा दे रहा है कौन मुझे
दिल परेशाँ है और नींद नहीं आती है।

अजीब ढंग है मुझको खबर नहीं अपनी
ज़िंदगी कौन सी मंज़िल पे लिए जाती है।

इक तमन्ना है जो हंसके नहीं जीने देती
क्यों नया दर्द बिना बात दिए जाती है

वो किताबों में दबी फूल की रंगीन महक
आज फिर क्यों मुझे मदहोश किये जाती है 

न संवरती, न बिगड़ती हैं, बदलती भी नहीं
कैसी तन्हाई है, जो मुझ पे मुस्कुराती है 
….