सर्द
रातों में सदा दे रहा है कौन मुझे
दिल परेशाँ
है और नींद नहीं आती है।
अजीब
ढंग है मुझको खबर नहीं अपनी
ज़िंदगी
कौन सी मंज़िल पे लिए जाती है।
इक तमन्ना
है जो हंसके नहीं जीने देती
क्यों
नया दर्द बिना बात दिए जाती है
वो किताबों
में दबी फूल की रंगीन महक
आज फिर
क्यों मुझे मदहोश किये जाती है
न संवरती,
न बिगड़ती हैं, बदलती भी नहीं
कैसी
तन्हाई है, जो मुझ पे मुस्कुराती है
….