भारत के झंडे में लिपटी, अनगिन यादें आईं हैं
माँ की ममता, लाड़ पिता का, जाने क्या-२ लाई हैं ।
इसमें बंद शहीदों के बलिदानों
की गौरव गाथा
आज़ादी की मीठी खुशबू, नई रवानी
लाई है ।
बीता बचपन इसमें है, भूले
बिसरे अफसाने हैं
चरखा, मित्र, पतंगें, टीचर, बंटती हुई मिठाई है ।
कुछ जोशीले नारे भी हैं, कुछ
बेबाक तराने हैं
गांधी, सुभाष और भगतसिंह की,
क़ुरबानी रंग लाई है ।
खट्टी अमिया का अचार और पूरी-आलू
की सुगंध है
आज़ादी की स्वर्णिम बेला सबके
मन को भाई है ।
रेखा राजवंशी,
सिडनी, ऑस्ट्रेलिया