साफ़ अपना ज़मीर कर लीजे
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ठहरे पानी से मलिन मत रहिये
सोच को बहता नीर कर लीजे
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कल गया, आज, अभी ये है सच
ये सच्चाई लकीर कर लीजे
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माफ़ कर दें और मांग लें माफ़ी
दूर यूँ मन की पीर कर लीजे
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न घुटन और न गर्मी बनिए
बन के शीतल समीर बह लीजे
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मौत जीवन की चल रही चक्की
भाव अपना गंभीर कर लीजे
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रेखा राजवंशी, सिडनी