Tuesday, October 2, 2012

पैरामैटा में बाजा बजाने वाला- 4 glimpses


मित्रों, 
हिंदी दिवस पर मेरे नए काव्य संगृह का सिडनी में विमोचन हुआ. लोकप्रिय  कवि अशोक चक्रधर जी ने इसकी भूमिका लिखी है उसके लिए उनका धन्यवाद. ऑस्ट्रेलिया की विभिन्न अनुभूतियों का संगृह है ये पुस्तक. बाजे वाले को देखना, सुनना एक अलग सी अनुभूति है, जब मैंने ये कविता लिखी थी तब से अब तक जाने कितने बाजे वाले बदल गए, यही है न ज़िन्दगी.  

 बिम्ब एक


बाजा बजाने वाला

वो आदमी
जो पैरामैटा  में 
वेस्टफील्ड के सामने
रेल के पुल के नीचे बैठ
बाजा बजाता है
कुछ नहीं बोलता
कला को
पैसे से नहीं तोलता
खुश रहता है
जो कुछ मिल जाता है


कुछ लोग चलते-चलते
रुक जाते हैं
उसे देखने के लिए
झुक जाते हैं
अपनी जेबें टटोलते हैं
मन ही मन
जाने क्या बोलते हैं
और एक सिक्का डाल देते हैं
बाजे वाले के सामने
बिछी चादर पर


कुछ छोटे बच्चे
माँ का हाथ थामें
चलते -चलते 
ठिठक कर देखते हैं
अनायास
उनके भोले चेहरे पर
उभर आती है
मुस्कान की रेखा
पता नहीं की बाजे वाले ने
इसे देखा या न देखा

कुछ नए जोड़े
जो कर नहीं पाते
बाजे वाले को अनदेखा
उसके संगीत को
सराहते हैं
कुछ और समीप
हो जाते हैं
हाथ में हाथ थामे
रोमांटिक हो
गुनगुनाते हैं


कुछ वृद्ध
जो पास पडी
बैंच पर बैठ जाते हैं
वे न जाने क्या सोचते हैं
जाने किस अतीत में
खो जाते हैं


और वो व्यक्ति
जो बाजा बजाता है
कोई प्रतिक्रया
नहीं जताता है
न खुशी, न दुःख
उसके चेहरे पर
कोई भी भाव
नहीं आता है
.......


  बिम्ब दो


बाजा बजाने वाला

सोचती हूँ
वो बाजा बजाने वाला
सबका मन बहलाने वाला
आखिर वो है कौन?
क्या उसका परिवार है?
यदि है तो कहाँ उसका घरबार है?


क्या वह बाजा बजाकर
कमाने को मजबूर है?
या फिर कला-प्रदर्शन के
नशे में चूर है?


या मनोरंजन करना
उसको भाता है
कितने बजे तक आखिर
वो बाजा बजाता है?
और किस समय वो
घर वापिस जाता है?


ये अनेकानेक प्रश्न
दिमाग में आते हैं,
पर बाज़ार में जाते ही
दुकानों की
चकाचौंध के बीच
गुम हो जाते हैं
और बाजे वाला
बन जाता है
वेस्टफील्ड की
एक दुकान मात्र
.......



 बिम्ब तीन 

बाजा बजाने वाला

पैरामैटा में
वेस्टफील्ड के सामने
रेल के पुल के नीचे
बाजा बजाने वाला
अब नहीं आता
जीवन की भागदौड़ में
किसी का भी  ध्यान
इस ओर नहीं जाता

पुल के नीचे का यह कोना
खाली हो या भरा
कोई फर्क नहीं पड़ता
या आपा-धापी में
लोगों का
बाजा बजने, न बजने से
कुछ नहीं बिगड़ता

वो कोना
जहां बाजे वाला
बैठता था
रीता, सुनसान सा
लगता है
न वहां अब कोई
बच्चा ठिठकता है
न कोई जोड़ा रुकता है

जाने कब हम
किसी के होने न होने के
अभ्यस्त हो जाते हैं
अपनी दिनचर्या में इतने
व्यस्त हो जाते हैं
कि किसी के जाने के बाद
उसे भूल जाते हैं
और अपनी ज़िंदगी में
मशगूल हो जाते हैं ।
..........

 बिम्ब चार


बाजा बजाने वाला

पैरामैटा में
वेस्टफील्ड के सामने
रेल के पुल के नीचे
खाली कोने में
फिर गूँज उठी है आज
बाजे की मधुर आवाज़

लोग मुस्कुरा रहे हैं
अपनी पसंद के गीतों को
साथ-साथ गुनगुना रहे हैं

कौतूहल से देखती हूँ
अरे बाजे वाला आ गया?
ऐसा लगा कुछ खोया
फिर वापिस पा गया

पास जाती हूँ तो पाती हूँ
एक खूबसूरत नौजवान
उसी कोने में बैठा
बाजा बजा रहा है
और हर आते-जाते को
रिझा रहा है

तो शायद
किसी का जाना
और किसी का आना
जीवन की सच्चाई है
बाजे वाले ने यह बात
कितनी आसानी से
समझाई है
.........